रविवार, 11 दिसंबर 2011

4. आप कहते हैं हँसते रहो


4-
आप कहते हैं हँसते रहो 
बहुत अच्छे लगते हैं जब आप हँसते हैं 
पर हँसू  किस पर ?
हंसू अपने भाग्य पर 
या हँसू अपने मज़बूरी पर 
हँसता हूँ बहुत हँसता हूँ 
हँसता हूँ अपनी गरीबी पर 
 हँसता हूँ हँसता ही रहता हूँ 
फटेहाल हँसता हूँ 
रो -रो कर हँसता हूँ अपने आदर्शों पर 
हँसता हूँ अपने पैबंद लगे इस दिल पर 
रोते को गले लगाकर 
हँसना ही मेरा काम है 
गम का सोता समेट कर 
हँसी का झरना बहाना ही मेरा काम है 
हँसता हूँ इस बेबस लाचार जिन्दगी पर 
जो जिन्दगी अब 
जिन्दा रहना नहीं चाहती है 
घिसट - घिसट कर जी रही है 
उसपे भी हँस रहा हूँ 
अब तुम ही कहो कितना हँसू ?
हँसी भी अब बेजान हो गई है 
खोखली हँसी से दिल बहलाता हूँ 
आँखों से रो पाता नहीं 
दिल से आंसू बहाता हूँ 
होटों पे मुस्कान लिये 
दुत्तकारों पे भी हँसता हूँ 
जिन्दगी से मौत ही हँसी है 
पर बदकिस्मती ऐसी 
ओ भी कोसों दूर है ।

सुधीर कुमार ' सवेरा '     10-11-1980

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