मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

29. ऐ कवि बंद करो ये कविता


29-

ऐ कवि बंद करो ये कविता
अच्छा हो गर शुरू करो 
रामायण या गीता 
श्वर तेरे छंद बद्ध नहीं होते 
    छंद तेरे गीत बद्ध नहीं होते 
ठीक से कोई जी नहीं पाता
 पता है तेरे कारण आज क्या - क्या होता ?
तेरी बातें जमाने के साथ चलती 
ज़माना तेरी बातों से चल सकता 
पर तेरी आज की फुहरता के कारण 
कोई भी रस , रूप और गंध की 
परिभाषा भी नहीं समझता 
अब तूं ही बता 
कैसे समझा पायेगा 
अपनी भाव और भंगिमा को 
अपने विचार और अभिलाषा को 
अपने व्यक्तित्व और अभिव्यक्ति को 
ऐसा न हो 
आने वाले कल को 
मिले न वो कड़ी 
जहां से टूटी थी इतिहास की लड़ी 
ऐ कवि बंद करो ये कविता 
अच्छा हो गर शुरू करो रामायण या गीता !


सुधीर कुमार ' सवेरा '            २९-०३-१९८०

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