शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

32. आज एक बात कहता हूँ कर विचार


32-

आज एक बात कहता हूँ कर विचार 
बढ़ने दो हद से ज्यादा अत्याचार 
मच जाने दो हर ओर हाहाकार 
हो न पायेगा तब तक पूर्ण संहार 
ह्रदय दूषित - दूषित हो चूका है आहार 
मानव ही मानव पर कर रहा है जुल्म औ पापाचार 
ख़त्म हो चूका है 
     माँ - बेटे और भाई बहन का लोकाचार 
शैतानियत का सा ही है अब सबका व्यवहार 
हर ओर है आज सिर्फ तेरी मेरी का व्यापार 
सो चूका है शायद अब मानवता का संसार 
भूल चुके हैं सब 
क्या होता है उपकार परोपकार 
इसे समझते हैं सब 
अब मुर्खता का हार उपहार 
इस पापी मन की नैया में बैठ 
सब सोंच रहे हैं 
हो जाये सब पार बेरापार 
सुनले - सुनले मेरे यार 
मौका मिलेगा न बार - बार 
कर ले खुद से आँखे चार 
अपना और इश्वर का साक्षात्कार 
       दूजा कोई नहीं यहाँ मेरे सरकार
इसी में निहित है 
दुनिया भर का सुख और शांति का भंडार !

सुधीर कुमार ' सवेरा '                ०९-०४-१९८०        

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