शनिवार, 31 मार्च 2012

58 . हिन्दू - हिन्दू का जिसने किया पुकार


58. 
हिन्दू - हिन्दू का जिसने किया पुकार 
हिन्दुस्तान जिसका प्यारा था 
भारत माँ का लाल दुलारा 
जो भारत माँ का प्यारा था 
वीर विवेकी पुरुष वही  
विवेकानंद हमारा था 
विश्व में भारत की संस्कृति  
और भारत माता का 
जिसने पहराया ऊँचा पताका था 
ज्ञान  चरित्र  की उज्जवल कीर्ति 
आदर्श पुरुष बन जो राह दिखाया 
तम तिमिर से जब हम घिरे थे 
सो गयी जब आत्मा हमारी थी 
गगन भेदी हुंकार से 
जिसने हमें जगाया था 
ज्ञान और कर्तव्य का पथ दिखाकर 
जिसने आगे हमें बढाया था   
वीर विवेकी पुरुष वही 
विवेकानंद हमारा था !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' - १७-१२-१९८३ - समस्तीपुर -

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

57. चारों तरफ से बंद है


५७. 
चारों तरफ से बंद है 
खिड़कियाँ और दरवाजे 
रौशनी का परिंदा 
पर नहीं मार सकता
मेरे अन्धकार युक्त 
सुनसान आंगन में 
सिसकते हुई मेरे बसंत में 
कोई फूल नहीं खिल सकता 
पंछी के कटे पर की तरह 
पंख फर्फराता 
उड़ने की हर कोशिश नाकाम हुआ 
ऊँचे दीवारों के परे 
मेरा विस्तृत आँगन है 
मेरे हर प्रयास को ठेस लगा 
हर भागीरथी प्रयत्न विफल हुआ 
अपने  आँगन को पाने में 
इस कैद से मुक्ति नहीं  
मुनादी करवादी गई है 
फांसी की सजा बहाल हुई है 
झूट का दीपक लेकर 
रस्सी  खोज रहे हैं लोग 
सत्य का गला  
है बिच  चौराहे पर 
आज उनको दबाना 
बड़ा हंगामा सा है हुआ 
कानाफूसी है हो रही 
दबे जबान से कह रहे हैं 
रस्सी नहीं मिल रही 
फैसला  बदल गया है 
तेज धार से है 
गला हलाल कर देना ! 
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १७-०२-१९८४ - समस्तीपुर - १२-३० pm 

गुरुवार, 29 मार्च 2012

56 . भारतीय धर्म का नाम मात्र


                                    ५६.
भारतीय धर्म का नाम मात्र 
इतना महान है 
बेचकर जिसे रजनीश भी 
बन सकता भगवान् है 
शब्दों का रहस्य इतना विकट है  
शब्दों का जाल इतना प्रबल है 
लिपट कर रह जाता जिसमे इंसान है  
साधना कर शक्ति कोई पा लेता है  
चमत्कार पर विश्ववास सबका हो जाता है 
फिर बन वैद्य सबको बात ऐसा ही कहता है 
करने और सुनने में जो रोगी को भाता है 
फिर क्या ! भगवान् वो बन जाता है
स्थूल तक ही सिमित रह 
सूक्ष्म तक सभी पंहुचना चाहता है 
भोग - भोग से कहीं शमन भी हो पाता है 
अब कौन कह सकता  है 
भगवान् घट - घट विराजते हैं  
भगवान् राल्स राईस कार में पधारते हैं  
पैसा अगर बहुत टेंट में हो 
दर्शन भी तब हो सकते हैं 
अब भक्तों  को शमन और संन्यास से 
समाधि की आवश्यकता नहीं 
भगवान् सम्भोग से समाधि तक पहुंचाते हैं 
विश्वास न हो फिर भी विश्वास कर लो 
जिस रास्ते आज तक जंहाँ कोई नहीं पहुंचा 
उस रास्ते आज के भगवान् पहुंचाते हैं 
उलटी सीधी बात कर वो बात बनाते हैं 
वही आजकल भगवान् कहलाते हैं !  

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२-०१-१९८४.- समस्तीपुर   

बुधवार, 28 मार्च 2012

55. रेतों को है जलन


५५. 
रेतों को है जलन 
पानी के स्पर्श से 
छाया को है आतंक 
छारे हुए छप्पर  से 
लोग बना रहे हैं शक्कर 
समुद्र के भाप से 
बसंत को ला रहे हैं 
प्लास्टिक के टुकरे से 
रफ्ता - रफ्ता आसमान घट रहा है 
मानवता के ऊंचाई से 
हम बहुत दूर निकल गए हैं 
चंद्रमा पर जाने से 
पंचसितारा मुकुट लगा लिया है 
इंसान के गोस्त खाने से 
सांस लेकर भी जीना 
अब दूभर है 
संस्कार को इस कदर खाने से 
परिवेश को त्याग कर 
जाये कहाँ अब इंसान 
पैदा लेते ही जिसे 
समाज बनाने लगता है शैतान 
हवा को हड़प कर भी 
जीना हम चाहते हैं  
सूर्य को ढांप कर भी 
रौशनी लेना हम चाहते हैं 
काले सूरज से 
पूर्णमासी की कल्पना किये बैठे हैं 
हर असल को ख़त्म कर 
नक़ल में अक्स तराशते हैं 
देख कर 
सत्य की झूठी कल्पना को 
कांटे में रस ढूंढते हैं 
प्रक्रिया हमारी इतनी उलटी है 
राह जिधर अँधेरे की है 
उधर ही प्रकाश ढूंढते हैं 
गटर बना कर ढेर सारा 
उपवन का बहार ढूंढते हैं 
बागों को नोच - नोच कर 
घर को सजाते हैं 
नक़ल में अक्श असल का ढूंढते हैं 
प्रतिपल  दर पर 
चौखट किवार तोड़ते हैं  
वीरान बना कर शहर को 
अपना आशियाँ ढूंढते हैं 
हर का है वही किनारा 
जहां होगा पहला ' सवेरा '

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १२-०२-१९८४  ८.५५ pm पटना

54. जिन्दगी में तुम क्या चाहते हो ?

                          54.
जिन्दगी में तुम क्या चाहते हो ?
कुछ और ही चाहते हो 
और क्या तुम पाते हो ?
चाहते पाना तुम सुख सुविधा 
फिर कैसी है तेरी ये दुविधा 
मत करो कभी ईमानदारी 
वर्ना बन जाओगे एक भिखारी 
भूल जाओगे सारी दुनियादारी 
बेईमान बनना ही होगा समझदारी 
जिन्दगी से तेरी येही होगी ईमानदारी 
दूर हो जाएगी तेरी सब गर्द सारी 
चाहेगी तुझे तब ये दुनिया सारी 
चूँकि तेरे पास होगी तब कार की सवारी 
बोलो मीठी बातें बड़ी 
करो दुनिया भर की धोखाधड़ी 
चरित्र  और आदर्श  की बातें हैं  थोथी  । 

सुधीर कुमार  ' सवेरा  ' १२ -०२ -१९८४  - 6 .40 pm. - patna
   

मंगलवार, 27 मार्च 2012

53. भूख हिम्मत है इन्सान की

५३.
भूख हिम्मत है इन्सान की
सुख कायरता है उसकी
भूख इन्सान को बेवकूफ  भी बना देता है
कभी - कभी
भूख के लिए
कब क्यों और कहाँ भी
बेमानी है
भूख , चिंता में ही
ख़त्म होती कहानी है
भूख निडरता देता है
इन्सान को
भूख डरपोक बनाता है
इन्सान को
भूख इन्सान को कर्मठ बनाता है
सुख बना देता आलसी है
सर्व शक्ति संपन्न यह निरीह समाज
कुछ कमजोर लोगों के
 वर्ग से हार जाता है
आखिर क्यों ?
स्व की पहचान नहीं उसे
अपनी ताकत का
अंदाज नहीं उसे
बस जाग उठो
तुम एक बार
हो जायेगा
नूतन विहान
बस एक बार
अपनी तन्द्रा तोड़ो
कमर कसो
और जूझ पड़ो
सफलता तेरे क़दमों में होगी
अधिकार तुम्हारे हाथों में |

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २६-११-१९८३.

सोमवार, 19 मार्च 2012

52 . निर्धनता वह पाप है


५२.
निर्धनता वह पाप है
जो सब कुछ ग्रस लेता  है
भूल जाते हैं लोग
नैतिकता और आदर्श भी
खो देते हैं मस्तिष्क का संतुलन भी
रह कर आप जैसे भी
निकृष्ट वो कहलाते हैं
निर्धनता वह पाप है
जो सब कुछ ग्रस लेता है
निर्धनता वह पाप है
जो इन्सान को
जानवर से भी बदतर बना देता है
निर्धनता वह पाप है
जहाँ अस्मत भी
व्यापार बनता है
सब कुछ रह कर भी
निर्धनता मूल्य उसका ग्रस लेता है
जिन्दगी को जीने का अधिकार भी छीन लेता है |

सुधीर कुमार 'सवेरा' २०-०८-८३

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

51 . बिखरे गगन में

51.  

बिखरे गगन में 
बिखरे अरमान 
तारों के झुरमुट में 
अपना सिसकता चाँद 
ध्रुव तारे सा टिमटिमाता 
फीका - फीका नीला आसमान 
जीवन की आशा 
अमराई की छाओं में 
जीवन धारा में 
उजरा अपना आशियाँ 
पत्थर पर 
रस्सी रगरने की तरह 
धुप छाओं के रेत में
सिसकते अरमानो के आंसू
धुप के खिलने तक 
सजनी से मिलने को 
नेह बरसा रहे 
दो बादल सखियाँ 
पल - पल को वो 
रिसते रहे 
ख्यालों को 
तितर - बितर कर जाते 
चाहत के हर कण 
मरुभूमि में बिखर जाते 
कण - कण को समेटते हुए  
' सवेरा ' की हर शाम 
कट रही है सांय - सांय
जुट - जुट कर 
दूर होते मंजिल को
देख - देख कर 
दिल का हर टुकड़ा पूछता है
कहाँ जांय  - कहाँ जांय  ?

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २९- ०१- १९८४ . लहेरियासराय

गुरुवार, 15 मार्च 2012

50 . दरिंदगी की छाँव में


५०.
दरिंदगी की छाँव में 
इंसानियत के नाम से 
मानवता है कांप रहा 
हाय - हाय के आवाज से 
लूट खसोट के व्यापार से 
अफसरों के भ्रष्टाचार से 
धोखे और विश्वासघात के व्यवहार से 
मानवता है काँप रहा 
तोड़ने के लिए ही कसमे खाना 
जहर देने के लिए प्यार करना 
निराश करने के लिए आशा बंधाना 
ठोकर मारने के लिए अपना बनाना 
मानव के इस विचार से 
मानवता है काँप रहा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  २४-०१-१९८४.

बुधवार, 14 मार्च 2012

49 . सच्चाई - सच्चाई और सच्चाई


४९.
सच्चाई - सच्चाई और सच्चाई
क्यों चिल्लाते हो सच्चाई और सच्चाई 
क्यों देते हो उसकी दुहाई 
कोसों कोस चलकर 
फासला बहुत तय किया 
कोसों और चलना है 
इतना चलकर भी वहीं पहुंचे हैं 
चलकर जहाँ से पहुंचे थे यहाँ तक
चलना फिर वहीं से है 
चलकर जहाँ से पंहुचे थे यहाँ तक  
घिसट - घिसट कर चलते है 
कभी लम्बी दौड़ लगाते हैं 
छलांगे लगाने से भी नहीं चुकते 
मौका जब भी मिलता है 
कुछ न कुछ लोग हरपते हैं 
पीछे मुड़ कर देखते हैं 
चले थे जहाँ से 
फिर वहीं आ पहुंचे हैं 
हिरनी , खरगोश और कछुए 
हर की दौड़  से दौड़ते  हैं 
फिर भी बहुत दूर हैं !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 09-०१- १९८४   

सोमवार, 12 मार्च 2012

48 . बादलों की दो परतें


४८.
बादलों की दो परतें 
आकाश में तैर रहे
छन - छन कर कभी 
धरती पर धुप खिल रहे 
दोनों बादलों की दिशाएँ दो हैं 
एक अन्ध्कार्युक्त 
एक प्रकाशलिप्त रहे
संक्रमण काल होता है 
कठिनायों से आच्छादित 
सूर्य का ही जब ये छल है 
तो पूर्वी दिशा के 
सूर्यवंशी का हाल क्या होगा ?
छित - पुट प्रकाश की किरणे
अपने स्वर्णिम रश्मि से 
आशाओं का एक दीप जला जाती है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  १५-०१-१९८४

रविवार, 11 मार्च 2012

47 . नदी का तट


४७.
नदी का तट 
उड़ते रेत 
बिखरते खेत 
सांझ ढली 
पुरवाई चली 
रीढ़ में दर्द 
पेट में मरोड़  
महगाई ने दी
सबकी कमर तोड़ 
नदी का तट 
सुखा हर घट 
लोहे का नल 
लगा बिजली का जंग  
सुनी है चौखट 
भीड़ भड़ी मरघट 
सुखा हर घाट 
पैसे का घट 
गम की हर रात 
' सवेरा ' की है बात !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  २७-११-१९८३

शनिवार, 10 मार्च 2012

46 . हर के पास जज्बात है पर बात कहाँ है ?


46-

 हर के पास जज्बात है पर बात कहाँ है ?
हर के पास अभिमान है पर मान कहाँ है ?
हर के पास बुरत्व  है पर गुरत्व कहाँ  है
हर और असत्य है सत्य कहाँ है ?
हर और अधर्म है धर्म कहाँ है ?
हर आदमी हैवान है इंसान कहाँ है ?
हर और जफा है वफा कहाँ है ?
हर और अनैतिकता है नैतिकता कहाँ है ?
हर और झूठ , फरेब है , त्याग और बलिदान कहाँ है ?
हर और इर्शिया - द्वेष है प्रेम कहाँ है ?
हर और नास्तिकता है आस्तिकता कहाँ है ?
हर और मिलावट है वास्तविकता कहाँ है ?
   हर और अब बेईमानी है ईमान कहाँ है ?
हर और हिंसा के पुजारी हैं अहिंसा अब कहाँ है ?
हर और छल - प्रपंच है साफगोई अब कहाँ है ?
 हर और संकुचित विचार है विशाल हृदय कहाँ है ?
हर और जाती , धर्म , भाषा , एवं क्षेत्र की साम्प्रदाइकता 
इन सबों से ऊपर राष्ट्रवादिता कहाँ है ?
हर और स्वार्थ ही है अब निस्वार्थ कहाँ है ?
देख दृश्य यह ' सवेरा ' का हृदय विदीर्ण हो रहा है 
पर इनका समाधान कहाँ है ?

सुधीर कुमार ' सवेरा '               26-11-1983  

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

45 . हाँ यह घर है


45-

हाँ यह घर है 
बैठक खाना नहीं 
स्नानघर नहीं 
फिर भी यह घर है 
 चौखट नहीं 
दालान नहीं 
फिर भी यह घर है 
 बात नहीं
व्यवहार नहीं 
आचार नहीं 
विचार नहीं 
है शान्ति नहीं 
फिर भी यह घर है 
है कहने को छः 
   पर कोई ऐक्य नहीं 
एक है ईशान कोण 
एक वायव्य कोण 
एक अग्नि कोण 
एक नैरित्य कोण 
एक आकाश की और 
एक पाताल की और
पूर्वाभिमुख कोई नहीं 
फिर भी यह घर है 
पउआ  है टुटा
फिर भी चौकी है 
 टेबुल पर तकिया है 
चौकी पर बर्तन  है 
फिर भी यह घर है !

सुधीर  कुमार ' सवेरा '       27 11-1983  

गुरुवार, 8 मार्च 2012

44 . कहाँ गई मेरे मन की शान्ति


44-

कहाँ गई मेरे मन की शान्ति 
क्यों है ऐसा मेरा मन ?
 दोलत नैया की भांति 
डगर - डगर पे 
ठहर - ठहर कर 
भंग हो जाती है मेरी शान्ति 
एक झंझावत सा उठता है 
एक तूफान सा गुजरता है 
बेदर्दी से मन को मेरे 
मथ कर गुजरता है 
' माँ ' शरण में भी आकर तेरे 
जो न शांति मन में मेरे भरे 
जाऊं कहाँ मैं फिर किसके द्वारे 
पहले ही तुने मेरे ठौर कहीं न हैं छोड़े
फिर मैं क्या ' माँ ' तेरी यह माया 
हर रिश्ते पहले ही तुने हैं तोड़े 
आया शरण में तेरी मैया 
फिर भी क्यों न तू मेरे रिश्ते जोड़े 
देर हो जो इतनी तेरे घर में 
यह भी तो है अंधेर तेरे घर में 
माँ जो तू सच्ची मेरी मैया 
जल्दी मिला दे अपनों की नैया  
घर से गया न कोई 
खाली हाथ है 
तू दयामई करुनामई मैया है मोई 
देख शरण में तेरे आया कोई 
जो तू न अब जागी 
तो निशित रूप से मुझको खोई  
जाग - जाग - जाग जा 
दीप शिखा जला जा 
दूर तिमिर को कर जा
भयावह लपटों से 
त्रान मुझको दिला जा 
हे जग्गनमई जगदम्बा माता 
आकर अब तो दरश दिखा जा 
अन्यथा कर जाऊँगा कुछ अनर्थ 
देना न तब तुम मुझको दोष व्यर्थ 
जीवन का अब नहीं कोई अर्थ 
   कर चुकी जब तुम सब अर्थ की व्यर्थ 
फिर कहाँ रह गया जीवन का कोई अर्थ ?


सुधीर कुमार ' सवेरा '            08-12-1983

बुधवार, 7 मार्च 2012

43 . गरज रहा है आज राष्ट्र हमारा


43-

गरज रहा है आज राष्ट्र हमारा  
चीख - चीख कर वो आज पुकारा 
कहाँ सोये हो मातृभूमि के वीर पुत्र तुम 
रो रहा है आज वतन हमारा 
असाम जल रहा जल रहा पंजाब हमारा 
अपने ही धरती पर 
देखो दुश्मन ने है ललकारा 
 अरुणाचल को चीन झपटता 
  पाकिस्तान है झपट रहा कश्मीर हमारा 
सोये हुए हैं आज देखो 
भारत माँ के लाल 
रो रहा है आसाम हमारा 
रो रहा पंजाब हमारा 
तमिलनाडु ने चीख - चीख कर आज पुकारा 
आओ बढ़ो आगे निकलो 
फिर से शहीद होने को 
हो जाओ तैयार
 शहादत मिलेगी फिर एक बार  
अमर होने को हो जाओ तैयार 
रो रहा है आसाम हमारा रो रहा पंजाब 
कहाँ छिपे हैं भारत माँ के लाल 
सर पे बांधे कफन निकालो 
प्रभात फेरी फिर एक बार
  गरज रहा है आज राष्ट्र हमारा 
भर हुंकार निकल परो
फिर एक बार !  


सुधीर कुमार ' सवेरा '          09-12-1983

मंगलवार, 6 मार्च 2012

42. आइना झूठ बोलता है


42-

आइना झूठ बोलता है 
क्या गलत कहा ?
गलत आइना ने कहा 
 मैंने क्या गलत कहा ?
आइना क्यों नहीं तू कहता ?
जो सच नहीं 
वो झूठा है 
आइना मैंने माना 
तू समदर्शी है 
पर दृष्टि तू ठीक रख 
सच को सच कह 
झूठ को कह झूठ 
माना तू दुसरे का 
चाहता नहीं दिल दुःखाना 
पर गलत को 
गलत का एहसास 
न कराएगा 
तो वह सही होगा कैसे ?
तब तो तू आइना न हुआ
की  दलाल हो गया 
हर ग्राहक को खुश करने वाला !


सुधीर कुमार ' सवेरा '           04- 12- 1983 

सोमवार, 5 मार्च 2012

41 . सोता रह रे नीच समाज


41-

 सोता रह रे नीच समाज 
 मरता रह रे नीच समाज
तेरी यह दशा ही तुझको है प्यारी 
   व्यथा में लिपटता रह रे नीच समाज 
गिरा लिया है खुद को इतना 
अब उठने का साहस ही न रहा 
अपना ही बोया अब तू काटे जा
छल ,धोखा , झूठ , बेईमानी 
  जो तू अब तक बोता रहा 
लेता रह अब यही सब तुम 
और खूब बिलखता रह  
   पर अब कोई नहीं सुनेगा 
बस अपना रोना तू ही सुनेगा 
राम , कृष्ण को मंदिर में है छोड़ा 
अपने में कंस और रावण को बिठाया 
फिर क्यों कोई राम -  कृष्ण तुझपे रोयेगा !

सुधीर ' कुमार 'सवेरा '         09-12-1983 

रविवार, 4 मार्च 2012

40 . सच कह के जमाने को


40-

सच कह के जमाने को
अपना मजाक उड़ाया है 
 रास्ता सही बता के जमाने को 
अपना ही आशिंयान जलाया है 
मान जमाने को दे के 
अपना बहुत अपमान कराया है 
सहिष्णुता इतनी अधिक 
चाहिए भी नहीं थी होनी  
विवेक जमाने को देनी न थी इतनी
  की कह ऐसा 

जमाने ने मुझपे ही ढ।या  है 
जमाने का रखते - रखते इज्जत 
 इज्जत अपना ही धुलवाया है 
खुद के हाथ को 
जो न थी उठने की आदत 
मौका जमाने को हाथ उठाने का दिया है 
चुप रख - रख कर खुद को 
जमाने को बोलने का मौका दिया है 
झूठ - बोल बोल कर जमाने ने 
सच पे ऐसा मुलम्मा चढ़ाया है 
की सच को छुपने के लिए 
मुखरा मेरा ही मिला है !

सुधीर कुमार ' 'सवेरा            09-12-1983   

शनिवार, 3 मार्च 2012

39. समाज का नैतिक स्तर


39-

समाज का नैतिक  स्तर 
इतना सड गया है  
गल  -  गल कर गिरने लगा है   
  बदबू  सी उठने लगी है
नैतिकता की नाक ही सड़ने लगी है 
स्वार्थ को देवता मान 
पैसे को पूजने लगा है 
यह समाज इतना सड गया है 
निःस्वार्थ का भाव ही भूल गया है 
त्याग की बात का अब युग गया है 
राष्ट्र धर्म के नाम पर
स्वार्थ धर्म ही सबका बन गया है 
दो  लोग जो इसका अपवाद हैं 
खुद को घुन लगा रहे हैं 
अपना जीवन जला रहे हैं  
 टिमटिमाते प्रकाश से 
घना कोहरा भगा रहे हैं !


सुधीर कुमार ' सवेरा '       09-12-1983

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

38. ऐसा क्यों सोंचते हो ?


38-

ऐसा क्यों सोंचते हो ?
की जी नहीं सकते हो
की भूखे ही रह जाओगे
कब ख़त्म होगी 
तेरे ये हरपने की प्रवृति 
खुद के गौरव को 
मिटटी में मिलाने की प्रवृति 
जो आज न मुड पावोगे 
तो जी नहीं पावोगे 
ऐसा क्यों सोंचते हो 
की अपने अधर्म से 
धर्म का फल पावोगे 
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
अपने हाथों से 
रास्ता अपना खोद कर  
मंजिल पर तुम पहुँच पावोगे 
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
जिस रास्ते जो कोई 
अब तक न पहुंचा 
तुम भला कैसे पहुँच पावोगे ?
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
रावण बनके भला  
तुम अपने को राम कहलवा पावोगे !

सुधीर कुमार ' सवेरा '          10-12-1983 

गुरुवार, 1 मार्च 2012

37. ' तुमने ' मिलकर ' हम ' को बनाया है


37-

' तुमने ' मिलकर ' हम ' को बनाया है 
तुमने ही सिंहासन बनाया है 
जैसे तुम थे वैसे ही सत्ता नायक बनाया है 
अब तुम घबराते हो 
अपने ही निर्मित 
हाथों के घरौंदों से 
उन्हें चाहते हो बदलना 
बदलाव शुरू करो अपने से 
मत भूलो यह 
राज तंत्र में होता था यथा राजा तथा प्रजा
प्रजातंत्र में होता है यथा प्रजा तथा राजा 
अब जो चाहते हो परिवर्तन 
 लावो परिवर्तन अपने में 
सिद्धांतों और आदर्शों को रतो मत 
बनावो वह व्यवहार अपने में 
चाहते हो नैतिकवान चरित्रवान राजनेता 
बनाओ नैतिकवान चरित्रवान पहले अपना बेटा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '           05-11-1983