शुक्रवार, 2 मार्च 2012

38. ऐसा क्यों सोंचते हो ?


38-

ऐसा क्यों सोंचते हो ?
की जी नहीं सकते हो
की भूखे ही रह जाओगे
कब ख़त्म होगी 
तेरे ये हरपने की प्रवृति 
खुद के गौरव को 
मिटटी में मिलाने की प्रवृति 
जो आज न मुड पावोगे 
तो जी नहीं पावोगे 
ऐसा क्यों सोंचते हो 
की अपने अधर्म से 
धर्म का फल पावोगे 
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
अपने हाथों से 
रास्ता अपना खोद कर  
मंजिल पर तुम पहुँच पावोगे 
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
जिस रास्ते जो कोई 
अब तक न पहुंचा 
तुम भला कैसे पहुँच पावोगे ?
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
रावण बनके भला  
तुम अपने को राम कहलवा पावोगे !

सुधीर कुमार ' सवेरा '          10-12-1983 

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