रविवार, 11 मार्च 2012

47 . नदी का तट


४७.
नदी का तट 
उड़ते रेत 
बिखरते खेत 
सांझ ढली 
पुरवाई चली 
रीढ़ में दर्द 
पेट में मरोड़  
महगाई ने दी
सबकी कमर तोड़ 
नदी का तट 
सुखा हर घट 
लोहे का नल 
लगा बिजली का जंग  
सुनी है चौखट 
भीड़ भड़ी मरघट 
सुखा हर घाट 
पैसे का घट 
गम की हर रात 
' सवेरा ' की है बात !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  २७-११-१९८३

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