बुधवार, 27 जून 2012

79.मैं सविता तूँ सावित्री

79.

मैं सविता तूँ सावित्री 
मैं अग्नि तूँ पृथ्वी 
मैं वायु तूँ अंतरिक्ष 
मैं मन तूँ वाक 
मैं आदित्य तूँ धौ 
मैं नक्षत्र तूँ चंद्रमा 
मैं दिन तूँ निशा 
मैं उष्ण तूँ शीत 
मैं बादल तूँ वर्षा 
मैं तड़क तूँ विद्धुत 
मैं अन्न तूँ प्राण 
मैं वेद तूँ छन्द 
मैं दक्षिणा तूँ यज्ञं 
मैं हुआ आशक्त था जब तुझ पर 
तेरे स्वभाविक नीले केश 
लहरा रहे थे कुक्षी तक 
अप्राकृतिक आभुष्णओ की 
थी नहीं जरुरत तुझे 
खिल रही थी यूँ ही 
इन्द्र धनुष की तरह 
विकसित नील कमल से 
श्याम वर्ण से युक्त 
तेरे दोनों नेत्र 
चकित हिरणी के समान 
चंचल दिख रहे थे तेरे नेत्र 
स्वाभाविक चंचलता से युक्त 
तेरे दोनों सुन्दर भौहें 
कामदेव के धनुष की तरह 
कर रही थी कानों से भेंट 
दोनों भोंहों के मध्य से 
निम्न भाग की ओर 
प्रशस्त हो रही थी 
उन्नत नासिका 
कर रही थी 
फूलों के लावण्यता को फीका 
रक्त कमल की आभा सी 
फैल रही थी मुख पर उसकी
पूर्ण चंद्र की आभा से 
लग रही युक्त थी 
सौ सूर्य और लावण्य से 
संयुक्त लग रही तेरी मुख थी 
चिबुक के समीप 
पहुँचने के के लिए
कुचों में लग रही होड़ थी 
उन कुचों के मुख 
श्याम वर्ण से युक्त थी 
वक्ष लग रहे कमल की कली थी 
मध्य भाग में 
रेशम से मुलायम 
मुट्ठी में ही बंद करने लायक 
लग रहे थे एकदम 
बिजली की कड़क सी उज्जवल 
लग रही दन्त पंक्ति थी 
मैं हुआ आशक्त था 
जब तुझ पर 
नज़र मेरी पड़ी थी 
दिख रही थी तूँ ऐसी ही उस वक्त !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 02-09-1983

मंगलवार, 26 जून 2012

78.साल ऐसा पिछला गुजरा

78.

साल ऐसा पिछला गुजरा 
याद अमिट जो छोड़ गया 
भूल के भी सारी जिंदगानी को 
भूल न पायेगा दिल उन लम्हों को 
भर जाये भले जख्म सारा 
भर न पायेगा घाव पिछले साल का सारा 
जब - जब याद दिल को 
वो चोट आयेगा 
जिन्दगी खुद को रोते हुए पायेगा 
याद कर सारी ख़ुशी को 
दिल भुला न पायेगा 
विगत के सारे ख़ुशी को 
खुशियों का ऐसा बौछार मिला 
ग़मों का ऐसा तूफान मिला 
बीते वर्ष का प्रथम छह महिना 
बीता हर पल 
बन खुशियों का तराना 
बाँकी का छह महिना 
गुजरा बन के 
विभत्स सपना 
जैसा कि पहले 
न कभी था सोंचा न समझा 
ऐसे ही बिता 
गुजरे वर्ष का हर महिना !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 
31-12-1983 समस्तीपुर 

77.एक नाचीज हूँ मैं

77.

एक नाचीज हूँ मैं 
गलियों का सह्जादा 
और सड़कों का 
आवारा हूँ मैं 
वक्त की सहनाई नहीं 
बेवक्त का सुर हूँ मैं 
बच के उनके दामन से 
जो न निकल पाया 
वही ' सवेरा ' हूँ मैं 
सुनना चाहो या न चाहो 
सुनाता हूँ 
किस्साए दास्ताँ मैं 
न वो शब्जपरी थी 
ना ही वो लाल परी थी 
हाँ तो यारों 
ना तो वो सुर थी 
ना ही वो हूर थी 
बस मेरे आँखों की 
वो एक नूर थी 
कभी नीला आसमान था 
अब काली घटा हूँ मैं 
कभी दिले जानों जिगर था 
अब दिले नासूर हूँ मैं 
चश्में बददुर था कभी 
जिनके लिए 
अब बददुरे दस्तुर हूँ मैं 
कभी वो लैला 
मैं मजनू था 
अब उस कहानी का 
बस एक मजमून हूँ मैं 
कभी मेरे लब पे 
उनका लब था यारों 
अब सुनता हूँ 
उसी लब से 
मौत की ख़बरें यारों 
कभी मेरे साँस से 
उनकी सांसें चलती थी 
मेरी धड़कन भी वो 
सुनती थी कभी यारों 
अब उन्हीं सांसों से 
सुनता हूँ फुफकार यारों 
जब जो मिला 
अपना बना लिया यारों 
सुनता हूँ अब कोई 
उन्हें अपना मिल गया यारों 
उससे ही अब उन्हें 
अपना मतलब निकालते 
देखता हूँ यारों 
खाई थी वो 
मेरे सांसों की कसम 
खाई थी साथ 
जीने मरने की कसम 
खाई थी भूखे भी 
सदा साथ रहने की कसम 
खाई थी जुदा होते ही 
मर जाने की कसम 
बोली कभी होंगे न जुदा 
खाई थी वो 
वादा निभाने की कसम 
खाई थी वो 
मेरे जिंदगानी की कसम 
खाने को क्या - क्या न खाई 
खा गई सारे कसमों को 
खाने को तो वो खा गई यारों 
मरने को तो
बस मैं मरता हूँ यारों 
चाहिए तो था उसे कुछ और 
अपना कोई मिल ही गया 
क्या हुआ गर जो 
न मैं मिला उनको यारों 
हर हाल में जिन्दा रहूँगा 
उसकी रुसवाई की है कसम 
हर हाल में हंसूंगा 
उसकी बेवफाई की है कसम 
हर हाल में रहूँगा 
उसकी ठोकर की है कसम !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-12-1983 समस्तीपुर   

76.तुझसे जुदा होकर हमने !

76.

तुझसे जुदा होकर हमने 
ना जाने कितने गम हैं सहे 
कह नहीं सकते जुबाँ मेरे 
आँखों ने जो दर्द हैं सहे 
दिल ने जख्म जो हैं खाए 
कह क्या सकता तुझको मैं भला ?
प्यार का बस एक एहसास हैं पिए 
प्यार लिए तुझसे दूर चला 
देता है अब दर्द 
जुदाई के ये दिन 
कैसे हैं कटे 
तुझसे जुदा होकर देखो 
जीते जी कैसे हैं मरते 
हर शाम दे जाती है टीस 
जिन लम्हों के साथ जिए 
प्यार का न होता कोई रिश्ता 
रूह से बस ये एहसास करो 
बिछुर कर भी हम कैसे जीते 
फरियाद नहीं बस एहसास करते 
दूर रहो पर याद करो 
जीवन के हर पल में 
बस यही एक एहसास करो 
न आँखों से कहो 
न ओठों को खोलो 
दिल से मुझे बस प्यार करो !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-03-1984 
कोलकाता 9-00 pm 

सोमवार, 18 जून 2012

75.उसे जिन्दगी से बहुत प्यार था

75.

उसे जिन्दगी से बहुत प्यार था 
कैसा उसका तन होगा 
इसका उसे ख्वाब न था 
खुद उसके वादे 
उसके ही इश्क पर हँस रहे थे 
मुझको जब सब मिल गया था 
अब मैं नामुराद उदास आशिक 
सोंचों को तब उगाता रहा था 
हकीकत को जीवन मानकर 
रेगिस्तान में छाया का 
उम्मीदों भरा एक तलाश था 
प्यारों से भरे 
उसके जिन्दगी को पाकर 
सबने मिलकर उसके इश्क को 
एक कच्चे कब्र में दफना कर 
सबने तालियाँ बजाई थी 
जश्न मनाया था 
शहनाइयां बजाकर 
पर जब उसने 
अपने सच को 
कागज़ से कहा 
शब्दों ने चीख - चीख कर 
उसके भूत ने 
भविष्य से कहा 
सब बहरे थे 
शब्दों की भयानक कराह 
जिन्दा लाशों की नगरी में 
बेतरह हाथ पाँव मारकर 
कागज़ के सादे पन्ने की तरह 
साफ - साफ खामोश हो गया 
मेरा जन्म 
एक पवित्र सच था 
मेरा तन झूठा हो गया 
उसकी जिन्दगी 
कुँवारी कली की सुबह बन गयी 
हर चीख उसका शांत हो गया 
बोया गया 
उसके वादों और शब्दों का पौधा 
हो जाएगा जब बड़ा 
जिन्दा लाशों की नगरी में 
दफनाये अपने कब्र से 
नंगे पांवों दौड़ते हुए 
चौखट को मेरे 
जो उनके पाँव छुए 
पुनर्जन्म हो जाएगा 
उसके शब्दों को 
उसका सतीत्व मिल जाएगा 
उसके वादों को 
सर उठाकर 
फिर से एकबार 
जीने का सच्चा सहारा मिल जाएगा 
खुले आकाश की धुप 
उसके खाश अपने 
आँगन में खिलेगी 
हर कुछ संभव है 
गर आत्मा पूरी मरी न हो 
तिल के बराबर भी 
जो आत्मा जगी होगी 
झूठ को छुपने का 
कोई ठिकाना न होगा 
झूठ अपना ही चेहरा खरोंच कर 
खुद लहूलुहान हो जाएगा 
जिन्दा रहकर भी 
जिन्दा लाश ही कहलायेगा 
सफ़र ख़त्म हो जाएगा गर जो कब्रिस्तान जाग जायेगा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  29-02-1984 
कोलकाता 6-00pm 

बुधवार, 13 जून 2012

74.खेल ये तक़दीर का

74.

खेल ये तक़दीर का 
बहुत ही है निराला 
मिलते रहे हम तुम से 
मिल - मिल कर जुदा हुए 
तुम अब मिलो तो कैसे ?
मेरे लिए तुम तो खुदा हुए 
तुमने बताया न कभी 
छोड़ मुझे यूँ चली जाओगी 
तुफां दबाये नहीं कलेजे में दबती 
तुम भूल न जाना कभी 
बस यही कसम है तुझे मेरी 
मेरे अरमान बस घुटा करते 
सपनों की दुनिया उजड़ती 
आदर्श के महल ढहते 
क्या कहूँ यारों तुम से 
कैसी है तक़दीर मेरी 
कदम - कदम पर शौक है जिन्दगी 
मिलना चाहकर भी 
गर जो न मिल पाओ तुम 
अगले जन्म में जरुर मिलना तुम 
सारे सपनों से 
अपने विचारों से 
दिल की दुनियाँ जलाये बैठे हैं 
विदिर्ण  होती कलेजा हमार 
तेरे विछोह वेदना से 
आँखों से टपकी हर बूँदें 
तुझसे मिलने की दुआ करते 
दिल चीख उठता है 
काश जो जुदा होने से पहले 
तुझे अलविदा भी कह पाते !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-03-1984 
कोलकाता 3-00 pm  

गुरुवार, 7 जून 2012

73.शायद मुझे


73.

शायद मुझे 
भूल जाना चाहिये 
नदी का वो तट बंध 
सून - सान रास्तों पर 
बने वो दो जोड़े 
पद चिन्ह
शायद उन्हें 
मिट जाना चाहिए 
जाड़ा के 
कम्बल की वो गर्माहट 
मुझे भूल जाना चाहिए 
वक्त के खजाने में 
जमा किये वो लम्हें 
हाथों से तन की सेवा 
मन से मन की 
दो धड़कन जो एक थे 
दो आत्माओं के मिलन की 
कैसे भुला सकेंगे 
हमारे पैरों के 
जहाँ निशान बने थे 
हमारी छायायें 
अब वहां भटक रही हैं 
शायद अभिसप्त 
दण्ड स्वरुप 
श्रापित 
उद्धार के लिए 
हमें एक हो जाना चाहिए !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 29-03-1984 - 
कोलकाता - 2-30 pm 

बुधवार, 6 जून 2012

72.पुराने नजरों से

72 .

पुराने नजरों से 
निश्छल कामनाओं से 
वही शाश्वत 
नूतन - पुरातन 
प्यार से बोझिल पलकों से 
कामनाहीन होकर 
एक इंसान समझकर 
हर अहम् से अलग हंटकर 
वंशागत चादरों को परे कर 
वही पहली 
और आखरी 
नजरों से 
एकबार फिर मुझे देखो 
मैं तुम्हारा ही हूँ 
तेरा ही सहारा हूँ 
बेहद प्यार 
जो  दे सकता है 
स्नेहसिक्त रसयुक्त 
ओठों के ललाम 
प्यार बन  
जो हंसा सकता है 
प्यार का अमृत 
जिसने बांटा था 
वो मैं ही हूँ 
एक बार फिर 
दिल तरप रहा है 
प्यार उड़ेलने को 
दिल मचल रहा है 
साँसों की गर्माहट देने को 
हाथ बेताब हैं 
तेरे अश्कों से 
अपना दामन भरने को 
तेरे शापित अँधेरे रास्ते में 
जीवनदात्री रौशनी 
बिखेरने को 
दिल चाह रहा है 
आना ही है तुझको 
फिर चले आओ 
बिलकुल शांत है 
तेरा ये अपना घर 
भटकना था शायद तुमको 
समाज के अँधेरे रास्तों पर 
उजाला लिए मैं खड़ा हूँ 
तेरे ही घर के दरवाजे पर 
रास्ता तुझे अपना 
किसी से पूछना नहीं है 
तुम्हे तो पता है 
मेरा अकेलापन 
मुझे कितना व्यथित करता है 
आना ही है तुमको 
अब न विलम्ब करो 
बस चले आओ 
एक उगने वाले सूरज से 
एक डूबने वाले सूरज से 
नित्य मन भर जाता है 
एक अनकही पीड़ा से 
मेरे तरफ देखो 
आँखों में आँखे डाले 
साहस नहीं तुम्हे 
फिर भी क्या 
देखो मेरे तरफ 
मैं वही  हूँ 
कह रही है 
आँखों को मेरी 
निर्दोष रौशनी 
कहीं कोई दोष नहीं 
भले ही 
बहुत सी चीजें 
गुजर गई हैं 
फिर भी कहीं कोई 
दोष नहीं
देखो ! मुझे 
मैं हूँ वही 
तेरा पहला 
और अंतिम 
कभी न ख़त्म होने वाला प्यार 
मैं सिर्फ तुम्हारा ही हूँ !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  29-03-1984 
कोलकाता - 1-50 pm