गुरुवार, 7 जून 2012

73.शायद मुझे


73.

शायद मुझे 
भूल जाना चाहिये 
नदी का वो तट बंध 
सून - सान रास्तों पर 
बने वो दो जोड़े 
पद चिन्ह
शायद उन्हें 
मिट जाना चाहिए 
जाड़ा के 
कम्बल की वो गर्माहट 
मुझे भूल जाना चाहिए 
वक्त के खजाने में 
जमा किये वो लम्हें 
हाथों से तन की सेवा 
मन से मन की 
दो धड़कन जो एक थे 
दो आत्माओं के मिलन की 
कैसे भुला सकेंगे 
हमारे पैरों के 
जहाँ निशान बने थे 
हमारी छायायें 
अब वहां भटक रही हैं 
शायद अभिसप्त 
दण्ड स्वरुप 
श्रापित 
उद्धार के लिए 
हमें एक हो जाना चाहिए !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 29-03-1984 - 
कोलकाता - 2-30 pm 

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