बुधवार, 13 जून 2012

74.खेल ये तक़दीर का

74.

खेल ये तक़दीर का 
बहुत ही है निराला 
मिलते रहे हम तुम से 
मिल - मिल कर जुदा हुए 
तुम अब मिलो तो कैसे ?
मेरे लिए तुम तो खुदा हुए 
तुमने बताया न कभी 
छोड़ मुझे यूँ चली जाओगी 
तुफां दबाये नहीं कलेजे में दबती 
तुम भूल न जाना कभी 
बस यही कसम है तुझे मेरी 
मेरे अरमान बस घुटा करते 
सपनों की दुनिया उजड़ती 
आदर्श के महल ढहते 
क्या कहूँ यारों तुम से 
कैसी है तक़दीर मेरी 
कदम - कदम पर शौक है जिन्दगी 
मिलना चाहकर भी 
गर जो न मिल पाओ तुम 
अगले जन्म में जरुर मिलना तुम 
सारे सपनों से 
अपने विचारों से 
दिल की दुनियाँ जलाये बैठे हैं 
विदिर्ण  होती कलेजा हमार 
तेरे विछोह वेदना से 
आँखों से टपकी हर बूँदें 
तुझसे मिलने की दुआ करते 
दिल चीख उठता है 
काश जो जुदा होने से पहले 
तुझे अलविदा भी कह पाते !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-03-1984 
कोलकाता 3-00 pm  

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