मंगलवार, 31 जुलाई 2012

105 . विचारों को पालकर

105 .

विचारों को पालकर 
ऐसा भी क्या हुआ 
दूसरों का भला हो 
चाह कर ऐसा भी 
अपना क्या हुआ 
औरों ने तो 
बारूदों का ढेर ही 
कदम - कदम पर 
मेरे पग तल पर बिछा दिया 
सिसकते मेरे सुमन में 
नफरत का लावा ही 
जगह - जगह बिछा दिया 
औरों को प्यार कर 
पल - पल प्यार बाँट कर 
अपना ये हाल हुआ 
सबके आँसू पोंछे हैं 
जोड़ कर गैरों का जिगर 
अपना क्या हाल हुआ 
काश जो बोल सकते 
ये मूक दो आँखें 
दर्द दिल को 
जो है सहना पड़ता 
ये जिस्म तो जीने को मजबूर है 
ये ओंठ हँसने के काबिल न रहा 
गैरों को हँसाने को 
अप्राकृतिक ही जी लेता !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  31-01-1984

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