रविवार, 15 जुलाई 2012

83 .जिन्दगी में आये वो

83.
जिन्दगी में आये वो
कसमें खा - खा कर 
मेरी जिन्दगी को ही 
भुला दिया 
सब कुछ भुला कर 
दूर से आसमाँ जमीं को 
छूता नज़र आता है 
मुझे भी कुछ ऐसा ही 
लगा था उनके पास आकर 
जब वो मुझ को छोड़ गये 
तब याद आया मुझे 
लोगों ने ठीक ही कहा था 
पास आकर 
' सवेरा ' कब था 
तेरे दुनियाँ में उजाला ?
अँधेरा ही अँधेरा 
मिला उजाले के पास जाकर 
दिल के जख्मों को मत गिनो 
कुछ और जख्म खा जाने दो  
मय के पैमाने को मत गिनो 
मयखाने को खाली हो जाने दो 
अपने शामियाने को मत गाड़ो यहाँ 
गर्म ग़मों के झोंके चलते जहाँ 
मैं तेरे दर्दों का एहसास करता हूँ 
चूँकि मैं अकेले जी लेता हूँ 
तुम्हें बहुतों में जीना पड़ता है 
मैं सब ग़मों को पी लेता हूँ  
तुम्हें सिर्फ आँसुओं को पीना पड़ता है 
एक बदनसीब का यह उपहार है 
स्वीकार हो तो स्वीकार हो 
नहीं तो यह बेकार है ! 

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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