बुधवार, 25 जुलाई 2012

96 . ढूंढे से एक सितारा न सही

96.

ढूंढे से एक सितारा न सही 
दिया भी जो मिल जाता 
इस खुदगर्ज दुनियाँ में 
हमें भी जीने का सहारा मिल जाता 
तूँ तो बिलकुल ही भूल गयी 
काश जो मैं भी भूल पाता 
तेरी दुनियाँ बसते ही 
मेरे घर तो खण्डहर हुए 
जो मेरा जीवन भी बस पाता 
मैं तो डूब गया 
गम के समंदर में 
जैसे ही तुझे 
खुशियों का संसार मिला 
क्या अपराध किया 
जो ये सजा मिली 
मैं जान तो पाता 
तुझे जो उतना 
प्यार न किया होता 
आज खुद को न 
इतना रुला पाता 
तुझे तो गुमान भी न होगा 
तेरे प्यार ने कितने 
दर्द हैं सहे 
एक दर्द का भी जो 
तुझे एहसास होता 
हमें भी 
इस खुदगर्ज दुनियाँ में 
जीने का सहारा मिल जाता !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  11-07-1983 समस्तीपुर 

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