सोमवार, 6 अगस्त 2012

115 . लोग कहते रहे

११५ .

लोग कहते रहे
इल्जाम देते रहे
तुझे अपना कहने को
न जाने यार
क्या - क्या न हम सहते रहे
पर जवाब नहीं तेरा भी
सच को कह कर
हम झूठे हो गए 
तुम झूठ कह कर भी
ज़माने में सच्चे रह गए
वफ़ा का सबक
मुझको सिखलाकर
खुद ही बेवफा बन गए
आशियाँ मेरा जलाकर
खुद अपना जहाँ बसा लिए
रोने को पहले ही
जिन्दगी में क्या कुछ कम था
जो इस तरह
दिल मुझसे लगाकर
खुद अनजाने बन चले
तेरे इस फितरत का
कोई जवाब नहीं है मेरे पास
चंद  तोहमते सर
मेरे लगाकर चल दिए !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २०-०१-१९८४
चित्र गूगल के सौजन्य से 

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