बुधवार, 15 अगस्त 2012

122 . किस पाप कि तुने सजा दी है

१२२ .

किस पाप कि तुने सजा दी है
ये गम कि रात दी है
रोने को हर याद दी है
ना जाने ये किस पाप कि सजा दी है
ऐसे भी लोग जीते होंगे
सोंचा न था
खाली दिल से भी
जिस्म का बोझ ढ़ोते होंगे
सोंचा न था
बन के रह गया हूँ मैं
पैमाना खाली शराब का
सीप पानी से बाहर भी रह लेगा
ऐसा कैसे तूँ ने सोंचा
जिन्दगी में मेरे
इस तरह समा कर चली जाओगी
सोंचा न था
ये किस पाप कि तुने सजा दी है
ये गम कि रात दी है
रोने को हर याद दी है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  १०-12-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से

कोई टिप्पणी नहीं: