बुधवार, 29 अगस्त 2012

135 . कुछ क्षण तेरे संग जो बीते

135 . 

कुछ क्षण तेरे संग जो बीते 
अब फिर होंगे प्रतीत न होते 
दो साँसों के बीच 
रहती थी न कोई चीज 
दोनों ही मस्त हो लगाते थे गोते 
अब फिर होंगे प्रतीत न होते
उन साँसों के बीच में बातें होती थी वही 
जिसमे छिपी रहती थी 
भविष्य की निधि 
हर धड़कन में खुशियों के 
बीज थे बोते 
अब फिर होंगे प्रतीत न होते
रातों की एक दुरी 
बस थी एक मज़बूरी 
सारे शिकवे और गिले 
क्षण भर में ही थे दूर होते 
अब फिर होंगे प्रतीत न होते
होती थी हर शामें 
खाने के लिए कसमे वादे 
साथ जियेंगे साथ मरेंगे 
दिन और रातें 
अब फिर होंगे प्रतीत न होते
कुछ क्षण तेरे संग जो बीते !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  21-04-1980 
चित्र गूगल के सौजन्य से     

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