बुधवार, 29 अगस्त 2012

136 . आग में जितना ही तपे

136 .

आग में जितना ही तपे 
सोना होता है उतना ही कुंदन 
निराशा खाता है जितना ही मानव 
गर रखे रहा मात्र धैर्य 
तो वही बन जाता है मानव से महा मानव 
निराशा के बादल दूर हटेंगे जरुर
छिपा रहता है जैसे 
बादल के पीछे सूर्य 
ऐसे समय में 
हे ईश तेरा ही सहारा है 
दे के थोड़ी धैर्य तूँ 
लगा देता है सबका किनारा 
धैर्य ही है ईश्वर 
धैर्य ही है भाई 
कर्म को तुम समझ 
उसको बना लो साथी 
बादल के पीछे में 
सूर्य रत है जैसे कर्म में 
ऐसे ही गर लगे रहे तुम प्रयत्न में 
कैसे नहीं मिलेगी 
तुझको भला सफलता 
हार मानेगा तुझसे 
तब सारी विफलता 
ऐसी कोई बात नहीं 
जिसको तुम चाहो 
और कर न पाओ 
बस एक धैर्य के साथ 
कर्म में लगे रहने की 
है सिर्फ आवश्यकता !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  09-05-1980 
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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