सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

155 . अंबर से तारे तोड़कर

155 . 

अंबर से तारे तोड़कर 
जड़ दूँ साड़ी पे तेरे 
बागियों से कलियाँ चुन - चुन के 
सजाऊँ गजरा बालों पे 
तूँ लागे मुझको प्यारा इतना 
चकोर को लागे चंदा जितना 
मैं तो नाचूं मगन में तेरे 
तूँ ही भाये मन को मेरे 
फ़िजा में खुशबु तेरे ही साँसों की 
झरनों में अल्हरपन 
हैं तेरे ही जवानी के 
बहती नदियाँ बलखाये इतनी 
लचके कमर तेरी जितनी 
कोयल ने ली राग तुझी से 
झरने ने सीखा संगीत तुझी से 
मन मेरा नाचे रे 
मैं तो गाऊं मगन में 
पायल तेरी जब - जब खनके 
दिल मेरा छन छनन छन छन के 
मैं तो बिछुं फूल तेरे हँसी के 
गाऊं गीत ख़ुशी के 
मन मेरा नाचे रे 
मैं तो गाऊं मगन में 
अंबर से धरती तक 
चहुँ दिशाओं में 
छोड़ नहीं है अंत नहीं है 
चंदा भी लेकर तुझ से चाँदनी 
देती धरा पर शीतल रौशनी 
गायें जिसमे चकोर 
भरे दिल में हिलोर 
नहाये जिसमे धरा 
सारा है जो यहाँ धरा परा 
मन मेरा नाचे रे 
मैं तो गाता रहूँ 
हरदम हरपल 
जब तक न आवे पतझड़ बेदर्द 
बहे बसंती बयार 
भरे मन में उल्लास 
मन मेरा नाचे रे 
मेरे जीवन मेरे साथी 
तूँ दीपक मैं बाती 
वो मेरे जीवन साथी 
बनी रहे अपनी ये जोड़ी 
बंधी रहे ये प्यार की डोरी 
प्यार अमर होता है यहाँ 
और नहीं कुछ रहता यहाँ 
बसी है तूँ ही हर धड़कन में 
लगी अगन है मेरे तन में 
मन मेरा नाचे रे 
मैं क्या दे सकता हूँ तुझको 
सिवाय प्यार के अंकन 
देकर अनगिनत अपने ओठों के चुम्बन 
मीठे प्यार का ये धड़कन 
आऊंगा मैं तुझको याद 
बनकर याददाश्त का एक दर्पण 
मीठा - मीठा ये अंकन 
बन जायेगा तेरे लिए एक तड़पन 
खोज रहा हूँ अपना खोया हुआ बचपन 
दिए थे जिसमे तूने 
अनगिनत मीठे - मीठे फड़कन 
अब वही नाचेगी तेरे गालों पर 
बन मेरे ओठों का थिड्कन 
तेरे इस रसवंती ओठों का 
मैं तो हूँ एक रसिक 
तेरे झील सी गहरी आँखों का 
मैं तो हूँ एक प्यासा 
तेरे रक्त कमल से चेहरे का 
मैं ही तो हूँ एक भौंरा 
करती है तूँ रति को भी फिका 
तेरे गाल हैं गुलाबी 
नैन बड़ी मतवाली 
पीने लगूँ जो 
इन नशीले ओठों को 
बीते युग सदियाँ भी जायें बीत 
तेरा मेरा दोष नहीं 
ऐसी होती ही है प्रीत 
लाल गुलाब के दलपत्र की तरह 
तेरे इन ओठों का 
मैं तो गाऊंगा 
नित्य नये - नये गीत मेरे मीत !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 18-09-1980 
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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