रविवार, 28 अक्तूबर 2012

168 . जन्म लेना बनकर इन्सान

168 .

जन्म लेना बनकर इन्सान 
होता नहीं इतना आसान 
बहुत सुकर्मों के उपरांत 
पाता यह नर तन है 
नारायण भी रहते हैं 
जिसके लिए सदा तरसते 
सबकुछ पाकर भी वे 
दैहिक सुख नहीं पा सकते 
पाकर इतना अनमोल धन 
व्यर्थ करती हो कलुषित मन 
भोगों की है यह नगरी 
भोगोगे तुम भी आज ये वचन दो 
आत्महत्या जैसी इक्षा 
करते हैं बुजदिल इन्सान ही 
हर आघातों को हँस कर
सहने से ही इन्सान बनता है महान 
करो कल्पना हर पल 
एक नए नूतन नव विहान की 
हर पल उत्तमता की करो आशा 
आशाओं पर ही है जिन्दगी इन्सान की 
मुझे दे दो वो हँसी की फुलझड़ी 
थी जो तूँ हर पल बिखेरती 
मुझे दे दो वो नटखट युवती 
जो थी चंचल शोख बड़ी 
मुझे लौटा दो वो चुलबुल चितवन 
जो थी तेरे चेहरे पर जड़ी 
मुझ से करो जिद हर बात की 
जो थी तेरी आदत पड़ी 
मुझे लौटा दो वो युवती 
जो थी हरदम हँसती हँसाती 
दुःख थे जिसके ठोकरों में 
लौटा दो मेरी वो चिर - परिचित 
मेरी अपनी मेरी प्रीत 
तोड़ दो उन बंधनों को 
जो तेरी आत्मा का हनन करते 
तोड़ दो उन बेड़ियों को 
जो बेड़ी बन कर तुझे जकड़ते 
भुला दो उन रिश्तों को 
जो तेरे सत्य के आड़े आते 
न कहने की नींव डालो 
तुम इन्सान हो 
तुम आजाद हो 
अत्याचार के खिलाफ 
आवाज दो आवाज दो 
तुम आजाद हो 
तुम इन्सान हो 
तुम्हे अधिकार है 
अपनी इक्षा के अनुकूल जीने का 
तुम इन्सान हो 
तुम आजाद हो 
छेड़ो जेहाद 
कसमों को न तोड़ने की 
खाओ कसमे 
तुम जिओगी अपने ढंग से 
तुम इन्सान हो 
तुम आजाद हो 
हम आजाद हैं 
हमें जीना है 
हम इन्सान हैं 
हम आजाद हैं 
हमारी अपनी ख़ुशी है 
हमारी अपनी जिन्दगी है 
नाचेंगे गायेंगे 
खुशियाँ मनायेंगे 
हम इन्सान हैं 
हम आजाद हैं 
तुम आजाद हो 
आओ आओ 
बाहें पसारे 
खुशहाली तेरे दर पे 
है कब से खड़ी !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  06-11-1980 
चित्र गूगल के सौजन्य से   

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