बुधवार, 14 नवंबर 2012

175 . रिश्ता अपना ढूंढ़ रहा हूँ

175 .  

रिश्ता अपना ढूंढ़ रहा हूँ 
मिल जाये कहीं कोई सहारा 
गुजरा वक्त न बन जाऊं 
कागज़ पे लिखी स्याही न बन जाऊं 
बन जाऊं मैं कोई बसेरा 
दिल के चमन में फूल खिले प्यार के 
पतझड़ भी लग जाये गले बहार के  
बह जाए सब ओर पवन प्यार के 
दुश्मन भी लग जाए गले प्यार से 
मिले मुझे भी प्यार अपने प्यार से 
टूट - टूट कर कर कितनी बार दिल जुडा है मुश्किल से 
इसे फिर न तोड़ना तुम इनकार से 
गर हो कोई शिकवा गिला 
कह दो मुझे प्यार से !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 04-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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