गुरुवार, 22 नवंबर 2012

180 . कोई कोई नागिन समान होती है नारी

180 . 

कोई कोई नागिन समान होती है नारी
कठोर वक्ष पत्थर दिल नीरस हों जिसके प्राण 
शब्द स्पर्श से पिघले न जिसके प्राण 
बना देती जीवन को हलाहल 
कर देती वो सर्वनाश 
कर ताण्डव नृत्य वो 
फिर भी न पाती चैन 
कर देती भंग दूसरों का शील
चुकता करती भावुकता का मूल्य 
तन मन भी क्यों न देतें हों झोंक !

सुधीर कुमार ' सवेरा '
चित्र गूगल के सौजन्य से   

कोई टिप्पणी नहीं: