शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

231. सौ बार अपनों की तरह मिले थे


231 .

सौ बार अपनों की तरह मिले थे 
अब बेगानों की तरह भी मिलने का हक़ नहीं 
सौ बार अधरों को चूमे थे 
अब तुझे छूने का भी हक़ नहीं 
सौ बार तूने मुझे अपना कहा था 
अब एक बार परिचित भी नहीं कहती हो 
ये बेवफाई की बात ऐसी ही होती है 
वक्त पर बना लेते हैं अपना 
काम निकल जाने के बाद 
भूल जाते हैं ऐसे 
जैसे कोई सपना 
धोखा और बेवफाई 
और दिलों से खेलना ही है इनकी फितरत !

सुधीर कुमार " सवेरा "            26-07-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से 

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