बुधवार, 3 अप्रैल 2013

242 . धर्म का आचरण करो



२ ४ २  .

धर्म का आचरण करो 
पर कटुता न आने दो 
आस्तिक रहो 
पर दुसरे के साथ प्रेम का वर्ताव न छोड़ो 
क्रूरता का आश्रय लिए बिना ही 
अर्थ संग्रह करो 
मर्यादा का अतिक्रमण किये बिना ही 
विषयों को भोगो 
दीनता को न लाते हुए ही 
प्रिय भाषण करो 
शूरवीर बनो 
पर बढ़ चढ़ कर बातें न करो 
दान करो 
पर अपात्र को न दो 
स्पष्ट ब्यवहार करो 
पर कठोरता न आने दो 
दुष्टों के साथ 
मेल मत करो 
बंधुओं से 
कभी कलह मत ठानो 
जो विश्वासी न हो 
उससे काम मत लो 
किसी को कष्ट पहुंचाए बिना ही 
अपना कर्म करो 
दुष्टों से अपनी बात 
कभी मत कहो 
अपने गुणों का वर्णन 
कभी मत करो 
साधुओं का धन 
मत छीनो 
नीचों का आश्रय 
कभी मत लो 
अच्छी तरह जाने बिना 
किसी को दंड मत दो 
गुप्त मंत्रणा को 
कभी प्रकट मत करो 
लोभियों को 
धन मत दो 
किसी से इर्ष्या न करो 
स्त्रियों की रक्षा करो 
क्रुद्ध रहो पर 
किसी से घृणा मत करो 
स्त्रियों का बहुत अधिक 
सेवन मत करो 
स्वादिष्ट होने पर भी 
अहितकारी मत खाओ 
निरभिमान हो कर 
माननीयों का आदर करो 
गुरु की सेवा 
निष्कपट भाव से करो 
दम्भहिन हो कर ही 
देव पूजन किया करो 
अनिंदित उपाय से ही 
लक्ष्मी प्राप्त करो 
स्नेहपूर्वक ही 
बड़ों की सेवा करो 
कार्यकुशल हो 
पर अवसर का विचार रखो 
पिंड छुड़ाने के लिए 
किसी से चिकनी चुपड़ी बातें न करो 
कृपा करो 
पर आक्षेप मत करो 
बिना जाने 
प्रहार मत करो 
शत्रुओं को मारकर 
शोक न करो 
अकस्मात कभी भी 
क्रोध मत करो 
जिसने अपकार किया हो 
उससे कोमलता का वर्ताव मत करो !

सुधीर कुमार " सवेरा "        १ २ - ० ६ - १ ९ ८ ४ 
० १ - ४ २ pm 

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