सोमवार, 27 मई 2013

252 .आज का सवेरा


२ ५ २ .

आज का सवेरा 
सुना रहा था एक सन्देशा 
कह रहा था खुद मुझ से 
उब गया हूँ 
खुद मैं इन्सान होने से 
यूँ मैं अल्ला भी बोलता हूँ 
भगवान का नाम भी जपता हूँ 
हर बाग चौराहे पे जाता हूँ 
सब इतना नीरस और छिछला लगता है 
मनो जैसे 
वन के पेड़ो ने 
अपने पत्ते और छाल उतार कर परे कर दिए हों 
मानव अब भी 
आदिम चेतनाओं के कब्र पर ही 
अपने खुश्क आंसू बहा रहा है !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४ 
१ - ५ ० pm 

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