बुधवार, 7 अगस्त 2013

271 . सब खोये - खोये सोये थे


२७१.
सब खोये - खोये सोये थे 
खट - खट - खट एक आवाज 
आत्मा के बिन द्वार के घर में 
धर्म निष्प्राण हो सोये पड़े थे 
बंद परतों के हर परत में 
लिपटी हुई संत्रासें 
सोई हुई विचारें 
विवेक और भावनायें 
मृतप्राय सहानभुतियाँ 
परोपकार और त्यागें 
मानवता की कल्पनायें 
सब कुछ बंद 
साउंड प्रुफ कमरे में 
जब खड़े हो दरबान में 
लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष 
छल , कपट , झूठ और फरेब 
हर दस्तक हो जायेगा गलत 
प्रतिध्वनित बातों से 
किसी पे असर नहीं होता 
निस्तेज अर्थहीन 
दरवाजे पर 
निष्प्रयोजन ही 
हर आवाज बोलती है
खोलो दरवाजा 
दस्तक है दस्तक - दस्तक है 
बाहर घर का 
सही मालिक खड़ा है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  २० - ०४ - १९८४ 
१२ -३९ pm 

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