बुधवार, 7 अगस्त 2013

272 . भविष्य की राह में चंदा की चांदनी बिछी है


२७२.

भविष्य की राह में चंदा की चांदनी बिछी है 
दुनियां की हर चाह में उसकी लोभ घुटी है 
मन की मनमानी सड़क पर प्यार का सिर्फ तराना 
दिल की लगी पर दिल्लगी से सिर्फ हँसता जमाना 
डगर डगर में है चंदा के किरणों का झुला 
जो भी इससे है गुजरा वो ही है रास्ता भुला 
तितलियों की बारातें उपवन को रिझाएँ 
दूर बहुत दूर से बहारें बुलाएँ 
शीतल मंद - मंद बहे बयार 
पर्दे में छिप - छिप शरमाये यार 
टेढ़ी - मेढ़ी खेतों की क्यारियाँ 
उसपे अल्हर सी जवानियाँ 
समय बीत रहा गीत गाता 
घेरा डाले हुई है बेसुध सी बदरिया 
शरमाते मुस्कान खिलते अरमान 
प्यार की थपकियों का लिए एहसान 
कहना सचमुच कुछ भी कितना सरल है 
वादा निभाना सचमुच ही बेहद कठिन है 
दुनियां की बात कह हर साँस मिटी है 
भविष्य की राह में चंदा की चांदनी बिछी है !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २० - ०४ - १९८४ 
३- ३० pm 

कोई टिप्पणी नहीं: