गुरुवार, 8 अगस्त 2013

283 .नभ के उर में बसती


२८३.
नभ के उर में बसती 
बादलों की आह 
मेरे आकाँक्षाओं की हर साँस में बसती 
तेरे मधुर स्पर्श की चाह !

रूठना मेरे किस्मत को मेरे जिंदगी से था 
रूठ जाओगी तुम मुझसे ये मालूम न था !

दरो दीवार पर मेरी नजरों ने तेरी तस्वीर बना दी थी !
एक हल्की सी चोट लगी 
और शीशे की तरह दीवारें ढह गयी !!

सुधीर कुमार ' सवेरा '  १९ - ०६ - १९८४ 
११ - ४५ am 

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