मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

319 .गाँव सौराठ

३१९
गाँव सौराठ 
लगे जहाँ सभा 
कहते हैं उसे सौराठ सभा 
बहुत प्राचीन समय से 
वर कन्या के पिता 
होकर इकट्ठे बनाते थे सभा 
वर दान कन्या दान के निमित से 
लगती थी पहले ये सभा 
गाँव पिलsखवार में
हुआ एक अमंगल
गाँव सौराठ में 
लगा ब्राह्मणों को एक पाप 
गौ हत्या का गाँव सौराठ में 
दरभंगा महाराज के समय 
हुए एक महान साधक 
गाँव सौराठ में 
गाँव के जिनके 
परित्याग कर दिया था लोगों ने 
प्रयास से जिनके 
महाराज प्रसन्न हुए 
अनुनय विनय से  उनके
और लगने वाले सभा को 
पिलsखवार से उठा कर 
दे दिया गाँव सौराठ को 
चली आ रही ये परम्परा 
सम्मिलित  होते जिसमे 
लाखों मिथिलावासी 
कोई दूजा वर्ण नहीं 
पंजीकार भी यहाँ बैठते 
विवाह जहाँ पंजीकृत होता 
भावनात्मक , सम्पर्कात्मक एवं 
सम्बन्धात्मक भाव जहाँ सन्निहित होता 
गाँव वो सौराठ कहलाता
बिहार में जिला मधुबनी से तीन  किलोमीटर की दुरी 
जहाँ मैथिल ब्राह्मणों का गाँव बसता 
पर नेता बनने के चक्कर में 
अदूरदर्शिता से आच्छादित 
नवयुवक वर्गों ने 
इस मर्यादित परम्परा के गौरव को 
विनष्ट कर डाला है 
भाषणो के बौछार से 
समझते जो कुछ नहीं 
समझने का वो दावा करते 
बोलना जिन्हे आता नहीं 
लोगों को वो भाषण पिलाते 
जो खुद नहीं करते 
वो औरों से करने को कहते 
किताबी बातों से 
सब का मन बहलाते 
अव्यवहारिक बातों से 
सबको व्यवहारिक बनाते 
समाज को नष्ट कर नेता कहलाते 
जो समाज को ग्राह्य नहीं 
अल्पबुद्धि से कानून से मनवाते 
समाज के सामने मैं का महत्व दर्शाते 
खुद जो सड़ी मान्यताओं से लिपटे 
स्वार्थी की दुनियाँ में जिनकी साँसे पलती 
वो ही समाज को बदलने का दावा करते !

सुधीर कुमार ' सवेरा '      

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