शनिवार, 10 जनवरी 2015

361 . मैं मर चूका हूँ

३६१ 
मैं मर चूका हूँ 
गुजरे वक्त के लिए 
मैं अभी पैदा नहीं हुआ हूँ 
आने वाले कल के लिए 
आज का दिन 
आखरी दिन है 
मेरे जिंदगी के लिए 
काँपते अँगुलियों से 
भविष्य के कँगूरे पर 
कुछ नक्काशी रचे थे 
भूत मेरे साथ था 
और 
वर्तमान फिसल गया 
ऐ ' सवेरा ' देख जिंदगी मशगूल है कितनी औरों की 
बातें किया करते हैं जो गैरों की 
अपने का जिन्हे पता नहीं 
पता बताया करते हैं वो गैरों की 
चेतना में मैंने स्व को खो दिया 
जड़ होकर मैं 
चेतनता को पा गया 
थाम ले कर्म को 
भूल जा भाग्य को 
विसरा दे अतीत को 
प्राप्ति में संतोष कर 
प्राप्त कर ले हर ख़ुशी को !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०४ - ०८ - १९८४ 

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