बुधवार, 21 जनवरी 2015

372 .सपने तूँ साकार हो जा

३७२ 
सपने तूँ साकार हो जा 
नभ में स्वर का संचार कर 
मौन स्वर मालाओं का हार पहना जा 
छितरे अविश्वासों के घेरे जा - जा 
बिखरे विश्वासघातों के कण 
तूँ परे हंट जा 
लोभ तूँ घेर मुझे 
जग के हित साधने को 
मोह तूँ जकड मुझे 
अपना सर्वस्व त्याग करने को 
काम तूँ मेरे कण - कण में समां जा 
ताकि खुले प्रकृति को भोग सकूँ 
क्रोध तूँ मुझ में सम्पूर्णता से समा जा 
कमजोरों  का उपकार कर सकूँ 
अहं तूँ दूर बहुत दूर मुझसे चला जा 
प्रेम रोम - रोम में तूँ मेरे समा जा 
नम्रता तूँ मुझसे सौतेला व्यवहार न कर 
कल्पना के शीशे तूँ इस्पात बन जा 
गैरों के सारे आंसू 
तूँ मेरी आँखों में समा जा 
मेरे सपने तूँ साकार हो जा 
साकार होकर तूँ निराकार हो जा !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १४ - ११ - १९८४ 
१० - ४० pm  

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