गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

464 . बकरी बोली मैं मैं मैं

४६४ 
बकरी बोली मैं मैं मैं 
बाँधी जिसके कारण है जाती 
मैना बोली मैं ना मैं ना मैं ना 
होती स्वतंत्र निज नभ में चरती 
बुद्धि का है यह फर्क 
मैं में मैं हूँ नहीं 
मैं ना में वह मैं है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

463 . देकर यदि किसी को कुछ तुम

                 ( परम पूज्य अम्मा और बाबूजी )
४६३ 
देकर यदि किसी को कुछ तुम 
कहते हो हमने दान दिया 
दान नहीं वह अहंकार किया 
फल में , उसका प्रसाद ग्रहण किया 
तभी समझो तुमने दान दिया 
धन है एक अर्थ अनेक 
देता दान , कीर्ति , गुणगान भी 
देता भोग , साज सम्मान भी 
देता गौरव  पद , उपकार भी 
देता स्वर्ग - नरक का द्वार भी 
देता त्याग , पुण्य - उपहार भी 
कुछ उपकार करो स्व कल्याण करो 
भोग में पर मत भाग्य बिगाड़ो 
बन मालिक धन को नौकर बनाओ !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

462 . मेरे मित्र मैं जब तुझसे मिला

४६२ 
मेरे मित्र मैं जब तुझसे मिला 
बोलो तुमने मुझको क्या - क्या दिया ?
सुनाकर तुमने इसकी उसकी सबकी निंदा 
देकर किसी को गाली किसी के गुण गाये 
किसीसे क्या गिला मन में रोष बसाया 
व्यर्थ में मुझको तुमपे क्रोध आया 
भरकर मुझमे द्वेष तुमने क्या पाया ?
मेरे मित्र !
तुमने कैसा किया यह प्रयत्न 
मैं जब तुमसे मिला बोलो क्या मिला ?

सुधीर कुमार ' सवेरा '

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

461 . स्नेह का सागर जिसका

४६१ 
स्नेह का सागर जिसका 
होता है जितना गहरा 
बनता वह सबका सहारा 
प्रकाश वह उतना देता 
है तब तक जलता 
स्नेह का वह घट 
जब तक भरा रहता 
इसी बुते पर तो 
यह मानवता है पलता 
मानव - दीपक की कहानी 
बिना स्नेह भला कौन 
बना यहाँ कोई ज्ञानी ?
खोकर क्षण हम यूँ बीत गए 
बरस कर मेघ जैसे हों रीत गए 
इस जीवन की क्या है उपलब्धि ?
बीत गया जब अब तक की अवधि 
खोकर कुछ जगत सुख पावे 
जीवन मिल अनंत से एक हो जावे !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

रविवार, 26 अप्रैल 2015

460 . हर मन के मंदिर में

४६० 
हर मन के मंदिर में 
माँ हो तेरी ही आरती 
पवित्र माँ जीवन यह करो 
ऐसा सुख पल में भर दो 
परमार्थ में मन मेरा लगे 
ऐसा मन मस्तिष्क मेरा करो 
पशुओं सा मन यह मेरा 
भोग पीछे सदा भागे नहीं 
ऐसी धारणा दिल में भर दो !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

459 . माँ का नाम लेते ही

४५९ 
माँ का नाम लेते ही 
भय मिटा शंका निर्मूल हुई 
चिंता सर्वदा के लिए नष्ट समूल भयी 
खोता जब यह विश्वास मनुष्य 
हो जाता वह अनाथ असहाय 
कर इतनी वह अपार मूर्खता 
हो गया हूँ मैं बुद्धिमान 
कह - कह इतराता मनुष्य !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

458 . माँ यह तेरी माया

४५८ 
माँ यह तेरी माया 
सब कुछ लगता अपना 
नहीं ! यह जगत सपना 
कहते थे जिनको अपना 
उन्होंने ही दिया दफ़ना 
भूल गए जैसे हो कोई सपना !

सुधीर कुमार ' सवेरा 

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

457 . मानव मन ले आया जगत में

४५७ 
मानव मन ले आया जगत में 
बस मैल भरा इस तन मैं 
पशुओं सा पेट भरा था मैं 
लड़ा औरों से बच्चे किये उत्त्पन्न 
व्यर्थ में गया यह जीवन मेरा 
हाय निरर्थक मर गया यूँ ही मैं 
अमूल्य मानत्व यूँ खो गया मैं !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

456 . मरने को यहाँ

४५६ 
मरने को यहाँ 
आये हैं सभी 
तापस शूर योगी 
पर मरते बार - बार 
कायर , क्रूर , कामी !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

455 . जागती रही शायद माया

४५५ 
जागती रही शायद माया 
कर न सका 
आज तक भी 
मैं जिसका खात्मा 
अब आपका कैसे 
मैं करूँ उपकार 
कौन भला करेगा 
अब आपका उद्धार ?

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

454 . करने को नाम

४५४ 
करने को नाम 
बहुत किया काम 
शरीर पुष्ट करने को 
खूब खाया मलीदा 
किया बहुत आराम 
कुछ अपनों के लिए 
कुछ गैरों के लिए 
क्या - क्या न किया 
खुद के लिए भी 
पर हाय रे किस्मत 
सोयी रही मेरी आत्मा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

453 . मैं कौन ?

४५३ 
मैं कौन ?
जरा सोंचो 
नश्वर शरीर 
हड्डी मांस 
चर्म का थैला 
बहुत घृणित 
बेहद मैला 
व्यर्थ मोह 
क्योंकर भला !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

452 . अज्ञानी …………

४५२ 
अज्ञानी …………
मान से जो फूलता है 
लोग कहेंगे क्या , सोंच
पथ से जो भटकता 
देह चिंता जिसे सताती 
वही मुर्ख कहलाता है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  

रविवार, 19 अप्रैल 2015

451 . अपने दर्प को

४५१ 
अपने दर्प को 
दर्पण में देखा 
दर्पण ने कहा 
मैं हूँ ऐसा 
मैं हूँ वैसा 
मेरा है यह 
रोयेंगे दिन चार 
कौन गया साथ 
कहो मेरे यार !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

450 . किस दौलत के बल ?

४५० 
किस दौलत के बल ?
पक्षी उपवन में चहकते 
किस अभिमान वश भला 
बागों में हँसते हैं फूल 
रोते हो तुम किसको हेतु बना ?
भला इसमें बता भूल किसका हुआ !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

449 . शून्य गुणक हो

४४९ 
शून्य गुणक हो 
शून्य भाजक हो 
शून्य ही होगा हाथ 
अज्ञान से मिले अहंकार तो 
होता है पूर्ण विस्तार 
ऋण अज्ञान ऋण अहंकार 
कोई न होगा बात !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

448 . माँ !

४४८ 
माँ !
कैसी तेरी जग की माया 
जिसे अपनाया सबसे धोखा पाया 
अच्छा ही हुआ माँ !
मैं मूरख 
रेत के मैदान से 
पानी का आश लगाया !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

447 . विवेक शून्य मनुष्य

४४७ 
विवेक शून्य मनुष्य 
हाय !
जी रहे हैं क्या खाय 
पतन पथ पर दौड़ने में 
तिल - तिल कर घुलने में 
हे माँ !
मन विकृत करने में 
बढ़ न पाये कभी मेरे पग 
भोगूँ न कभी ऐसा अभिशाप !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

446 . पूछा एक रोज मैंने शैतान से

४४६ 
पूछा एक रोज मैंने शैतान से 
पाते क्या हो तुम इंसान से 
क्यों देते हो लोगों को पतन 
पाते हो भला कैसे उनका तन 
शैतान बोला प्रसन्न मन 
त्याग , परोपकार , अच्छाई में 
लगता नहीं जिनका मन 
करते जब वो मेरा आवाहन 
खुश हो जाते पाकर झूठा आश्वासन 
तभी तो पा जाता मैं उनका तन !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

445 . जो कहते हो वो करते नहीं

४४५ 
जो कहते हो वो करते नहीं 
करें क्या फिर तुमसे आशा 
माया नाम है एक धोखा 
निर्मेष हो देखे जा तमाशा !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

444 . ह्रदय अशांत है

४४४ 
ह्रदय अशांत है 
स्वजन से स्वधन से 
और दुःख है , प्राप्त भोगों से 
भाग्य तुम्हारे हाथों में 
मत भटको भंवर में 
व्यर्थ पाते हो दुःख ह्रदय रोगों से !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

443 . किनको तुम देख रहे हो

४४३ 
किनको तुम देख रहे हो 
सब दौड़ रहे हैं अंधकूप की ओर 
क्या तुमको भी कूदना है उसमे 
औरों की तरह उस कुंएं में 
गर ऐसा नहीं है तो 
अपना अलग पुण्य पथ देखो !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

442 . दवा तीखी है

४४२ 
दवा तीखी है 
खाना तो पड़ेगा ही 
घाव सड़ रहा है 
आपरेशन तो करना पड़ेगा ही 
यदि चाहते हो त्राण 
शरणागत तो होना पड़ेगा ही !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

441 . अपने किये बिना क्या होता है ?

४४१ 
अपने किये बिना क्या होता है ?
अपने किये बिना भला कुछ होता है 
अपने किये बिना साधना निष्फल होता है 
अपने किये बिना दान नहीं होता है 
अपने किये बिना सेवा नहीं होता है 
अपने किये बिना झगड़ा नहीं होता है 
अपने किये बिना जागरण नहीं होता है 
अपने गए बिना स्वर्ग देखा नहीं जाता है 
अपने साधना किये बिना मुक्ति नहीं मिलता है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

रविवार, 12 अप्रैल 2015

440 . अपमान होगा

४४० 
अपमान होगा 
वर्तमान में दुःख होगा 
अच्छा है , परिणाम क्या होगा ?
निष्कर्ष यदि यश दायक है तो 
अपमान से भय का क्या काम है  ?

सुधीर कुमार ' सवेरा '

439 . आज ही सबसे महान

४३९ 
आज ही सबसे महान 
आज ही भविष्य का आधार है 
आज ही जीवन बनाने वाला 
आज ही करता जीवन कल्याण है 
कौन घड़ी जीवन का जो परम सिद्ध है ?
कौन घड़ी है वह जिसका परम सम्मान है 
अब तक क्या जाना नहीं उसे ?
आज ही वह जो आज ही भर है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

438 . पैदा लिए वृथा क्या ?

४३८ 
पैदा लिए वृथा क्या ?
सोया खोया खूब पढ़े - बढे 
लड़े झगड़े कटे मरे अपनों में 
मानव का इतिहास हाय यही बन गया क्या ?
एक औषधि लिया 
संतोष पाया सह लिया 
कम नहीं जो इतना किया 
कष्ट में विपत्ति में 
धैर्य रख हँसता रहा 
तभी तो गौरव इतना पाया !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

437 . सत्य तुम्ही में असत्य तुम्ही में

४३७ 
सत्य तुम्ही में असत्य तुम्ही में 
सत , रज  , तम तुम्ही हो 
हे मनुष्य ! सृष्टि के प्राण तुम्ही हो 
जगत के हास्य तुम्ही करुण तुम्ही हो 
रत्नगर्भा के महत्ती भार तुम्ही हो 
सोये से जागो देखो अपना जीवन 
सत चित के आधार तुम्ही हो 
यदि अब भी पथ भटके तो 
समझ लो प्रलय के कारक तुम्ही हो !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

436 . सम्पूर्ण जगत माँ मय है

४३६ 
सम्पूर्ण जगत माँ मय है 
मेरा अपना इसमें क्या ?
आकाश पृथ्वी सबमें तूँ 
मुझको किसी से लेना क्या !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

435 . यह तन मेरा नहीं

४३५ 
यह तन मेरा नहीं 
मैं परमानन्द ब्रह्म नहीं 
जन्म मरण के चक्कर में 
पीसने वाला हूँ क्या ?
मैं परमसत्ता नहीं 
दिक्क काल से बाधित नहीं 
अमीर या गरीब नहीं 
ऊँच नहीं मैं नीच नहीं 
मरते जो वो मैं नहीं 
तेरी ही प्रतिभाषित छाया 
अजर अमर मैं आत्मा हूँ !

सुधीर कुमार ' सवेरा '
२४ - १२ - १९८६ 

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

434 . माँ काली तूँ जगत जननी

४३४ 
माँ काली तूँ जगत जननी 
चरणों में ध्यान धराया कर 
मन को मेरे शुद्ध कर 
भक्ति भाव तूँ जगाया कर 
अपने अभिव्यक्त इस चराचर से 
मेरा स्नेह तूँ बढ़ाया कर 
कण कण में तुझको देखूं 
ऐसा विश्वास तूँ जगाया कर 
नश्वर तन मन से माँ 
अपनी सेवा तूँ कराया कर 
आत्मा की अमर ज्योति में 
अपना रूप तूँ दिखाया कर !

सुधीर कुमार ' सवेरा '
२४ - १२ - १९८६ 

रविवार, 5 अप्रैल 2015

433 . दिल के चमन में

४३३ 
दिल के चमन में 
जब पाँव तेरे पड़े थे 
जर्रा - जर्रा था महक उठा 
कली - कली थी खिल उठी 
ना जाने कैसे 
वफ़ा के मौसम में 
बेवफाई के तूफान चले 
दिल का चमन उजड़ा 
दिल की जमीं 
यादों की कब्रिस्तान बनी 
यादों के भूत 
ज्यादा शोर मचाते रातों में 
आहें उठाते टीस जगाते 
सोना होता नाकाम रातों  में !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 
१० - ११ - १९८६ 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

432 . कितने शेर कितने नगमे आये

४३२ 
कितने शेर कितने नगमे आये 
ना जाने दिल के किस कोने में 
इस कदर दफ़न हो गए 
न होंठ हिले न साँस चली 
न तुम आये न होश आया 
इंतजार में बस मौत का पैगाम आया !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 
१० - १० - १९८६ 

431 . चलो जां ऐसी जगह जहाँ सिर्फ हम

४३१ 
चलो जां ऐसी जगह जहाँ सिर्फ हम 
और हमारी तन्हाई हो 
न कोई शिकवा न गिला 
बस प्यार की जहाँ हवा हो !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

430 . है मेरे भी दुनियां से अच्छी और भी दुनियाँ

गुस्ताखी माफ़
...................... 
४३० 
है मेरे भी दुनियां से अच्छी और भी दुनियाँ 
कहते हैं कि मेरी दुनियाँ का है अंदाजे ख्याल और !

या खुदा जो न समझे अब समझेंगे वो मुझको कब 
दे और तक़दीर उनको जो न दे मुझको बदनसीबी और !

देखने के तुम्ही गमगीन नहीं हो सवेरा 
कहते हैं बहुत ग़मख़ार हैं ज़माने में और !

कतरा - कतरा बर्फ का दरिया में फ़ना हो जाना 
दर्द का बेदर्द होना है क्या दवा हो जाना 

असर आह के लिए चाहिए एक उम्र लम्बी 
कौन है यहाँ जीता फ़ना होने तक तेरी 
मेरी मय्यत में शामिल न होंगे ऐसी तो बात नहीं 
पर हम तो मिट जायेंगे और तुझे खबर तक न होगी !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

बुधवार, 1 अप्रैल 2015

429 .अवसर जब भी मिला

४२९ 
अवसर जब भी मिला 
हमें सम्हलने का 
हम बेवकूफ होते चले गए 
हमने अपना भाग्य खो दिया 
हम कभी इतने उठ नहीं पाये 
पकड़ना था मूल तत्व को 
हम निर्जीव मूर्ति पकडे रह गए 
आशा यही की 
देव सब दुरुस्त करेंगे 
परिणाम आज सामने है 
हमने तिब्बत खोया 
आजाद कश्मीर बना डाला 
सीमा बनाने की 
खुद की ताकत को 
हम जंग लगा बैठे 
चालीस सालों में भी 
हम अपना कानून नहीं बना पाये 
कुछ बड़ी बेकार चीजें 
हमने जरूर सीखी 
औरों के पीछे चलना 
और नक़ल करना 
हमारी विकाश प्रक्रिया 
कुंठित हो गयी है 
हम बुद्धिमान श्रेणी के हैं ?
जो बार - बार 
एक ही गलती को दुहराते हैं 
भूल से भी 
राह में पड़े पत्थर पे 
गर जो कोई फूल फेंक दे 
जन्म जन्मांतर तक 
हम पूजा करते चले जाते हैं 
मूर्तिपूजक इस हद तक 
हमें होना नहीं चाहिए 
कि फासला मंजिल का 
बस हो एक कदम का 
और हम तय न कर पाएं !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 
२९ - ११ - १९८६