मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

444 . ह्रदय अशांत है

४४४ 
ह्रदय अशांत है 
स्वजन से स्वधन से 
और दुःख है , प्राप्त भोगों से 
भाग्य तुम्हारे हाथों में 
मत भटको भंवर में 
व्यर्थ पाते हो दुःख ह्रदय रोगों से !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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