सोमवार, 27 अप्रैल 2015

461 . स्नेह का सागर जिसका

४६१ 
स्नेह का सागर जिसका 
होता है जितना गहरा 
बनता वह सबका सहारा 
प्रकाश वह उतना देता 
है तब तक जलता 
स्नेह का वह घट 
जब तक भरा रहता 
इसी बुते पर तो 
यह मानवता है पलता 
मानव - दीपक की कहानी 
बिना स्नेह भला कौन 
बना यहाँ कोई ज्ञानी ?
खोकर क्षण हम यूँ बीत गए 
बरस कर मेघ जैसे हों रीत गए 
इस जीवन की क्या है उपलब्धि ?
बीत गया जब अब तक की अवधि 
खोकर कुछ जगत सुख पावे 
जीवन मिल अनंत से एक हो जावे !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

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