गुरुवार, 14 मई 2015

480 . प्रीति मुझसे काल की ग्रह की

४८० 
प्रीति मुझसे काल की ग्रह की 
मेरे तेरे कर्मों के निर्णायक की 
हर पल जो साथ रहती 
' सवेरा ' ने सुबह के उजाले में 
ना जाने क्या - क्या खोया ?
दर्द , दीनता , दुर्बलता , दुःख , कायरता 
अति शोक भोग रोग योग 
पर शायद माँ भी कहीं सोयी  !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

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