मंगलवार, 16 जून 2015

501 . अहंकार !

५०१ 
अहंकार !
बुद्धि तत्व का एक विकार 
एक भाव जो सर्वथा है त्याज्य 
खोलता है जो अवनति का द्वार 
एक बोध जिसे जाने अंजाने हम पुष्ट करते हैं 
जिसे करोड़ों जन्म पहले ही हमें छोड़ना था 
जाने या अनजाने जिसे अब तक ढोते रहे
हमें मूल पथ से जो है भटकाता 
बार - बार जो हमें नीचे ढकेलता 
जो खुद को कभी जानने नहीं देता 
कर देता हमें अपने ही आत्मा से दूर 
अहंकार हमें माँ से दूर ले जाता है 
ब्रह्माकार वृति ही सर्वोत्तम विचार है 
माँ के चिंतन में लीन होने से हमें 
हमारा अहं भाव ही रोकता है 
सभी समस्याओं का मूल है अहंकार 
जीव और परमात्मा के बीच का अवरोध है अहंकार 
जिनका जीवन आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर नहीं है 
जीवन उनका उलझा है अहंकार के जाल में 
मैं और मेरा यही है इनका स्वाध्याय 
कुछ करने से पहले ही हो जाते वे आश्वस्त 
मेरा और किनका हित होगा इससे 
ऐसे लोग अपने अहंकार से परे 
समस्त संसार की उपेक्षा कर देते 
वास्तविक जगत मैं और मेरा के 
दायरे से परे हैं 
आध्यात्मिक जगत ही सच्चा संसार है 
अनंत का फैलाव ही 
आत्मिक जगत का स्वरुप है 
आध्यात्मिकता की कुंजी है
अपने आप को सीमित अहं सीमा से अलग कर 
माँ में प्रतिस्थापित करने का अभ्यास 
ज्ञान एवं भक्ति के अभ्यास से ही 
ऐसा संभव हो सकता है 
करत करत अभ्यास ते जड़ीमत होत सुजान 
रसड़ी आवत जात ते सिल पर परत निशान 
अभ्यास है करना 
अपने और दूसरों में वर्तमान 
एक ही माँ स्वरुप का दर्शन करना 
इस अभ्यास से अन्तरात्मा स्वयं निर्देशित कर 
अहंकार रूपी वृक्ष को समूल 
नष्ट कर देता है 
अहंकार को अपनी अंतिम 
वास्तविकता समझ लेना 
हमारी पहली भूल है 
अहंकार परिवर्तनशील है 
उसकी तुष्टि का हर उपाय 
भ्रम मूलक है 
हमारा आज का अहंकार 
जिस सिद्धांत को मानने पर 
बल दे रहा है 
कल वह बदल भी सकता है 
अर्थात हम मूलतः अहम नहीं हैं 
अहंकार वह बन्दर है 
जिसे हमेशा प्रसन्न नहीं रखा जा सकता है 
अहंकार को सर्वोपरि समझना 
मानसिक अशांति का पहला कारण 
अहंकार से प्रेरित कर्मों से 
जन्म मरण का छूट नहीं सकता 
अहंकार रूपी व्याधि से हम 
सत्संग , जप तथा पाठ से ही उबर सकते हैं 
अपने और परमात्मा के बीच की दुरी 
गर मिटानी है तो 
अहंकार को मिटाना होगा 
हमें समझना होगा 
जो हम हैं वही सभी 
सबों का नियंता एक माँ 
अहंकार रूपी दर्पण में हमें 
अपने आप को देखना बंद करना है 
ना तो यह शरीर मेरा है 
ना ही सांसारिक कोई वस्तु हमारी है 
हमें उपनिषदों के उद्घोषों के सहारे 
ऊपर उठना  होगा   
तभी हम अहंकार रूपी आग से 
ऊपरी धरातल से उठकर 
माँ से संपर्क स्थापित कर सकेंगे 
इस आस्था में विश्वास रख हम अपने 
कर्म पथ पर अग्रसर होकर 
प्रगति के शिखर को प्राप्त हो पुनः 
विश्व मंच पे गुरु रूप में 
अपने देश को प्रतिष्ठित कर सकेंगे !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

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