रविवार, 11 अक्तूबर 2015

551 . २ - ब्रह्मचारिणी



                     फोटो गूगल से साभार 
५५१ 
२ - ब्रह्मचारिणी 
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू  !
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिणियनुत्तमा !!
माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है ! यहाँ ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है ! ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी - तप का आचरण करनेवाली ! कहा भी है - वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म - वेद , तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं ! ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है ! इनके दाहिने हाथमे जपकी माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु रहता है !
अपने पूर्वजन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री - रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शंकर जी को पति - रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी ! इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया ! एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल मूल खाकर व्यतीत किये थे ! सौ वर्षों तक केवल शाकपर निर्वाह किया था ! कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे ! इस कठिन तपश्चर्या के पश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान शंकर की आराधना करती रहीं ! इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया ! कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं ! पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ गया !
कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा ! वह अत्यंत ही कृशकाय हो गयीं थी ! उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुःखित हो उठीं !उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए आवाज दी ' उ मा ' अरे ! नहीं , ओ ! नहीं ! तबसे देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम उमा भी पड़ गया था ! 
उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया ! देवता ऋषि , सिद्धिगण , मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पूर्णकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे ! अंतमे पितामह ब्रह्माजी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा - हे देवि ! आजतक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी ! ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी ! तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है ! तुम्हारी मनोकामना सर्वोतोभावेन परिपूर्ण होगी ! भगवान चंद्रमौलि शिव जी तुम्हे पति रूप में प्राप्त होंगे ! अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ ! शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं ! 
माँ दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देनेवाला है ! इनकी उपासना से मनुष्यमें तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम की वृद्धि होती है ! जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता ! माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है ! दुर्गापूजा के दूसरे दिन इन्हींके स्वरुप की उपासना की जाती है ! इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है ! इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है !   

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