मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

558 .९ - सिद्धिदात्री

५५८ 
९ - सिद्धिदात्री 
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि !
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी !!
माँ दुर्गाजी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है ! ये सभी प्रकारकी सिद्धियों को देनीवाली हैं ! मार्कण्डेयपुराण के अनुसार अणिमा , महिमा , गरिमा , लघिमा , प्राप्ति , प्राकाम्य , ईशित्व और वशित्व - ये आठ सिद्धियाँ होती हैं ! ब्रह्मवैवर्त्यपुराण के श्रीकृष्ण् - जन्मखण्ड में यह संख्या अट्ठारह बतायी गयी है ! इनके नाम इस प्रकार हैं - 
१ - अणिमा २ - लघिमा ३ - प्राप्ति ४ - प्राकाम्य 
५ - महिमा ६ -  ईशित्व , वाशित्व ७ - सर्वकामावसायिता ८ - सर्वगत्व ९ - दूरश्रवण १० - परकायप्रवेशन ११ -वाकसिद्धि १२ - कल्पवृक्षत्व 
१३ - सृष्टि सृष्टि १४ - संहारकरणसामर्थ्य १५ - अमरत्व १६ -सर्वन्यायकत्व १७ - भावना १८ - सिद्धि 
माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं ! देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था ! इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था ! इसी कारण वह लोक में ' अर्धनारीश्वर ' नाम से प्रसिद्ध हुए ! माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं ! इनका वाहन सिंह है ! ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं ! इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र , ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है ! नवरात्र - पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है ! इस दिन शास्त्रीय विधि - विधान और पूर्ण निष्ठां के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है ! सृष्टि में कुछ भी उसके लिये अगम्य नहीं रह जाता ! ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमे आ जाती है ! 
प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न करे ! उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो ! इनकी कृपा से अत्यंत दुःख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है ! 
नव दुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं ! अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा - उपासना शास्त्रीय विधि - विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नवें दिन इनकी उपासना में प्रवृत होते हैं ! इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है ! लेकिन सिद्धिदात्री माँ के कृपा पात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है , जिसे वह पूर्ण करना चाहे ! वह सभी सांसारिक इक्षाओं , आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूपसे माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा - रस - पीयूषका निरन्तर पान करता हुआ विषय - भोग - शून्य हो जाता है ! माँ भगवती का परम सानिध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है ! इस परमं पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती ! माँ के चरणों का यह सानिध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरन्तर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिये ! माँ भगवती का स्मरण , ध्यान , पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परमशान्तिदायक पद की ओर ले जाने वाला है ! 

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