बुधवार, 20 जुलाई 2016

577 . श्रीगंगा


                                    श्रीगंगा 
बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे ! छाड़इते निकट नयन वह  नीरे !!
कर जोड़ि बिनमों विमल तरंगे ! पुन दरसन होअ पुनमति गङ्गे !!
एक अपराध छेमब मोहि जानी ! परसल माए पाए तुअ पानी !!
कि करब जप तप जोग धेयाने ! जनम कृतारथ एकहि सनाने !!
भनहि विद्यापति समदयों तोहि ! अंतकाल जनि बिसरह मोहि !!

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