बुधवार, 14 सितंबर 2016

584 . श्रीदुर्गा


                                                  ५८४
                                   श्रीदुर्गा 
जय जय दुर्गे दुर्गति हारिनि , सब सिद्धिकारिनी देवी। 
भुगुति मुकुति दुहु बिनु पाविअ तुअ पद पंकज सेवी।।
विष्णु विरचि विभावसु वासव शिव तुअ धरए धेयाने। 
आदि - सकति भव भाविनि केओ न अन्त तुअ जाने।।
तनु अति सुन्दर मरकत मनि जनि तीनि नयन भुज चारी। 
शंख चक्र - शर कर तनु धारिनि शशिशेखर अनुसारी।।
मणिमय कुण्डल हार मनोहर नूपुर घन घन बाजे। 
किकिन रन रन सुललित कंकण भूषण विविध विराजे।।
पञ्चानन - वाहिनि दाहिनि होइ सुमरि महेश - विमोही। 
सदानन्द कह चरण - युगल तुअ सरन कएल जग जोही।।
                                                   ( प्राचीन गीत ) सदानन्द  

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