बुधवार, 30 नवंबर 2016

631 . देवीक आरती-शुभ आरति जगदम्ब तिहारी। देखि समूह गिरिराज कुमारी।।


                                        ६३१
                                देवीक आरती 
शुभ आरति जगदम्ब तिहारी। देखि समूह गिरिराज कुमारी।।
दीपक दीप पंचमुख धारी। ता मँह घृत कर्पूर सम्हारी।।
वीरा जनमन करत विचारी। प्राप्त समय अति सम सुखकारी।।
शिव विरंचि सनकादि मुरारी। कर आरति तुअ जगत विचारी।।
रत्नपाणि फल चाहत चारी। देहु जननि फल अति शुभकारी।।
                                                   ( मैथिल भक्त प्रकाश )  

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

. 630 . देवी श्रृंगार - सकल श्रृंगार सुभग शुभ वेशा। नृप गृह देवि कयल परवेशा।



                                     ६३० 
                               देवी श्रृंगार
सकल श्रृंगार सुभग शुभ वेशा।  नृप गृह देवि कयल परवेशा।
दिन दिन मंगल कारिणि धन्या। सिंह चढ़ल राजै गिरिकन्या।।
शारद चंद सुरुचि चय देहा। कृपा विलोचनि भक्त सिनेहा।।
क्षमा करिअ निज जन अपराधें। त्रिभुवन तारिणि शील अगाधे।।
रत्नपाणि कर गोचर आजे। सतत परिय मिथिलेशक काजे।।
                                                                        ( तत्रैव )  

सोमवार, 28 नवंबर 2016

629 . श्रीमहासरस्वती - दनुज दलित दुर्गे भयहारिणि जय पूरित मनकामे।


                                  ६२९
                        श्रीमहासरस्वती 
दनुज दलित दुर्गे भयहारिणि जय पूरित मनकामे। 
शुम्भ निशुम्भ निसुदिनि भगवति महासरस्वति नामे।।
धन रूचि केश भेष अति शोभित आनन आनन्द कंदा। 
तीनि नैन छवि अतिहि विराजित भालब्याल तनु चन्दा।।
सूल शंखरथि अंक वाण तुअ दहिन भाग कर चारी । 
घन हल पुनु मुसल सराशन वाम भाग कर धारी।।
अनुगति शंकरि असुर भयंकरि सारद शशि सम देहा। 
बाहन सिंह लसै तुअ अनुपम निज जन परम सिनेहां।।
रत्नपाणि कर पुट कय जाचति सुनिये देवि मन लाई। 
मिथिलापुर के पुरिये मनोरथ निसदिन रहिये सहाई।।
                         ( मैथिल भक्त प्रकाश )

रविवार, 27 नवंबर 2016

628 . श्रीमहालक्ष्मी - जै कमला कमलायत लोचनि भव भय मोचनि कन्या।


                                    ६२८
                           श्रीमहालक्ष्मी
जै कमला कमलायत लोचनि भव भय मोचनि कन्या। 
धन रूचि कुच चामी कर तनु रूचि चारि भुजा अतिधन्या।।
चारु किरीट विराजित मस्तक धारिनि पाटक चीरे। 
लसय वराभय कर दूई दुह पदमयुगल सुधीरे।।
चारि कनकघट भरत सुधारस अमृत गज कर लाए। 
वाम दहिन भय सिञ्चित कर मुख कमल मनोहर जाए। 
मणिगण जटित लसित भूखण तनु करुणा करू जगमाता।।
शंकर किंकर इन्द्र आदि सुर सेवक जनिक विधाता।।
पंकज आसन परम विकासन ताहि उपर लस देवी। 
रत्नपाणि तसु ध्यान मगन मन श्रीमिथिलेशक सेवी।।
                                                            ( तत्रैव )  

शनिवार, 26 नवंबर 2016

627 . श्रीमातंगी - कीरक सम रूचि स्याम सुतनु लस माणिक भूषित देहा।


                                    ६२७
                               श्रीमातंगी
कीरक सम रूचि स्याम सुतनु लस माणिक भूषित देहा। 
शिशु शशि भाल मुक्तामणि हासमुखी शुभ गेहा।।
निज पद विनत विभव वरदायिनि तीनि नयन तुअ भासे।
सुर मुनि आदि सकल जन सेवित चरण विजित परवासे।।
कटुक सुवास पान आरतमुख कर वर राजय बीना। 
रत्न सिंहासन ऊपर राजित षोडस बैस नवीना।।
दहिना हाथ दुऊ असि अंकुश लस पास सुखेटक वामे। 
अष्ट सिद्धि मयि सिद्धि सरूपा मातंगी जसु नामे।।
मिथिलापतिक पुरिय अभिलाषा निज पद नत अवलम्बे। 
रत्नपाणि तुअ पद युग सेवक गोचर करू जगदम्बे।।
                                    ( तत्रैव )   

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

626 . श्रीबगलामुखी - जय बगलामुखि अमृत सिन्धु बिच मणि मण्डप निधि देवी।


                                ६२६ 
                        श्रीबगलामुखी 
जय बगलामुखि अमृत सिन्धु बिच मणि मण्डप निधि देवी। 
ता बिच रत्न सिंहासन ऊपर तुअ पद लस भय भेदी।।
पीत वसन तुअ पीत विभूषण पीत कुसुममय माला। 
फूजल चिकुर निकर दुइ लोचन दुखमोचनि हरबाला। 
वाम हाथ रिपु रसन रक्तमय दहिन गदा अभिरामा। 
अनुगत जन जयकारिनि सुररिपु मर्दिनि पूरनकामा।।
कुण्डल लसित गण्ड मण्डल युग चण्ड भानु युग जोती। 
विपति विदारिनि रिपु मद हारिनि दन्त विराजित मोती।।
श्रीमिथिलेशक करू जय देवी पुरित करू सभ आसे। 
रत्नपाणि गोचर करू भगवति करू मम ह्रदय निवासे।।
                                                         ( तत्रैव )

शनिवार, 12 नवंबर 2016

625 . श्रीधूमावती - जय धूमावति जगत विदित गति श्याम रुच्छ तनु भासे।


                                      ६२५ 
                                श्रीधूमावती 
जय धूमावति जगत विदित गति श्याम रुच्छ तनु भासे। 
फूजल चिकर निकर अति लंबित तनु अनु छवि आकासे।।
कलह प्रेम अनुखन तोहि भगवति अम्बर मलिन शरीरे। 
दसन विकट अति विशद विरल गति स्वेद वह्य तनु धीरे।।
क्षुधित सतत मन रुच्छ त्रिलोचन कुक्ष सूप सन तोही। 
तरल सुभाव दुसह मन अनुखन जन उद्वेगन मोही।।
वायस रथ तुअ देवि त्रिलोचन वास रूचय समसाने। 
कउखन सुन्दरि अनुपम रूचि धरि कउखन परम भयाने।।
रत्नापाणि भन हरिय मुदित मन निज सेवक मोहि जानि। 
सदा करिअ मिथिलेशक मंगल गोचर सुनिय भवानि।।
                                                ( तत्रैव )

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

624 . श्रीछिन्नमस्ता - जय जगज्योति जगत गतिदाइनि चिकुर चारु रूचि भाले।


                                      ६२४
                             श्रीछिन्नमस्ता
जय जगज्योति जगत गतिदाइनि चिकुर चारु रूचि भाले। 
परम असम्भव सम्भव तुअ वस पीन पयोधर वाले।।   
कमलकोष रविमण्डल ता विच त्रिविध त्रिकोणक रेषा। 
ता विच रति विपरीत मनोभव सुषमा सरित विशेषा।।
पद आरोपित पत्र लस तापर अरुण भान शशि रेहा। 
उर सविशाल भाल रिपु मुण्डक फणि उपवीत सुरेहा।।
दक्षिण कर करवाल वाम कर निज शिर अति विकराले। 
लइलह रसन दशन कटकट कर फूजल केश विशाले।।
निज गण कलित उपर कय रुधिरक धार तीन बह धीरे। 
दुई दुई योगिनि पिबय दुऊ दिश निज मुख एक सुधीरे।।
रत्नापाणि निज सेवक जानिए मानिए देवि निहोरा। 
मिथिलापतिक सतत करू मंगल धन धरु गोचर मोरा।।
( तत्रैव )

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

623 . श्री भैरवी - अयुत उदित रवि रुचिर देह छवि अरुण पाट पट भासे।


                                    ६२३
                               श्री भैरवी  
अयुत उदित रवि रुचिर देह छवि अरुण पाट पट भासे। 
रिपु शिर निकल माल उर शोभित दश दिश ज्योति विकासे।।
रुधिर लेपमय पीन पयोधर मुख अरविन्द समाने। 
शशिधर रत्न मुकुट शिर शोभित मृदुल हास परधाने।।
पुस्तक अभय अक्ष जपमाला वर कर चारि निधाने। 
निज जनि शंकरि असुर भयंकरी श्री भैरवी तुअ ध्याने।।
विषय विषम रस ह्रदय देवि पद भज तन धरत ने ज्ञाने।
भुवन भुवन तसु उदित सुकृति वसु से जन भव पर ध्याने।।
जगत जननि विनती कछु सुनिए रत्नपाणि भन दासे। 
श्रीमिथिलेसक ह्रदय वास करू पुरिय तासु सभ आसे।।
                                                                  ( तत्रैव )

बुधवार, 9 नवंबर 2016

622 . श्री भुवनेश्वरी - जय भुवनेसि भीति भय भंजनि भगवति भूषित देहा।


                                      ६२२ 
                             श्री भुवनेश्वरी 
जय भुवनेसि भीति भय भंजनि भगवति भूषित देहा। 
श्याम जलद अभिराम चिकुर चय लसत भाल शशि रेहा।।
उदय समय रवि बिम्ब अरुण छवि नयन तीनि तुअ भासे। 
सिरमय जड़ित किरीट विराजित मुख सुषमा मृदु हासे।।
वाम उपरकर लसय अभय वर नीच बीच कर धन्या। 
दहिन उपरकर अंकुस तसु अध पास भास गिरि कन्या।।
भूपर भवन वृत्तिदल षोडस ता बिच वसु दल कंजे। 
ताहि बिच ऊपर तुअ पद युग कमल ध्यान भय भंजे।।
तुअ तनु रचन वचन गोचर नहि थकित शम्भु जगदीशा। 
भगत मनोरथ वस तुअ तनु वचन वे आपित ईशा।।
रत्नपाणि भन सुनिय सुमन भय करुणा करू जगमाता। 
पुरिय मनोरथ श्रीमिथिलेशक तुअ यश भव निरमाता।।
                                                   ( तत्रैव )

शनिवार, 5 नवंबर 2016

621 . श्रीत्रिपुरसुन्दरी - जय शिशु भानु अयुत तेजोमयि श्रीत्रिपुरसुन्दरी देवी।


                                   ६२१
                           श्रीत्रिपुरसुन्दरी  
जय शिशु भानु अयुत तेजोमयि श्रीत्रिपुरसुन्दरी  देवी। 
तीनि भुवन धन्या तोहि सब कह जकर पुरन्दर सेवी।।
कति विधि अतिरत आरत युत तनु बाल कलाकार भाले। 
अरुण वसन विलसित तुअ भगवति देवि त्रिलोचन बाले।।
सम सर पास धनुष इषु - दण्डक सृणि शोभित कर चारी। 
श्रीयुत चक्र विराजित तुअ पद कमल भक्त भयहारी।।
आगम निगम विदित तुअ महिमा के कहि सक अवसेषी। 
तुअ भय जगत भगत भवकारिणि की मत करत विसेषि।।
रत्नपाणि तुअ चरण सरोरुह सभक करिअ अभिलाषे। 
मिथिलपतिक सतत करू मंगल की कहब गोचर लाषे।।
                                              ( तत्रैव )