शनिवार, 12 नवंबर 2016

625 . श्रीधूमावती - जय धूमावति जगत विदित गति श्याम रुच्छ तनु भासे।


                                      ६२५ 
                                श्रीधूमावती 
जय धूमावति जगत विदित गति श्याम रुच्छ तनु भासे। 
फूजल चिकर निकर अति लंबित तनु अनु छवि आकासे।।
कलह प्रेम अनुखन तोहि भगवति अम्बर मलिन शरीरे। 
दसन विकट अति विशद विरल गति स्वेद वह्य तनु धीरे।।
क्षुधित सतत मन रुच्छ त्रिलोचन कुक्ष सूप सन तोही। 
तरल सुभाव दुसह मन अनुखन जन उद्वेगन मोही।।
वायस रथ तुअ देवि त्रिलोचन वास रूचय समसाने। 
कउखन सुन्दरि अनुपम रूचि धरि कउखन परम भयाने।।
रत्नापाणि भन हरिय मुदित मन निज सेवक मोहि जानि। 
सदा करिअ मिथिलेशक मंगल गोचर सुनिय भवानि।।
                                                ( तत्रैव )

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