शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

648 . जौं मोर विनति धरब देवि कान।


                                      ६४८
                                   श्रीदेवी
जौं मोर विनति धरब देवि कान। 
तौं मोर एक विपत्ति नहि अनुभव सतत रहत कल्यान। शान्ति स्वाभाव दैव नहि देलनि पाप पटल परधान।।
उदरम्भरि भरि जनम कहाओल त्याग नै पतितक दान।।
वृद्ध वयस किछु साधन सिद्धि न वञ्चक मे बलवान। 
एहन पातितकें के धुरि ताकत अम्बा तुअ---------------- 
कह कविचन्द्र मन्द कलिकाल मे पापी हम ----
प्रायः केओ देखि नहि पड़इछ हमर प्रबल।---------- 
( तत्रैव ) 

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

647 . तों हीं गौरी तों हीं वाणी तों हीं रमा महारानी।


                                      ६४७ 
                                  श्रीश्यामा 
तों हीं गौरी तों हीं वाणी तों हीं रमा महारानी। 
पूजा पटल एक न जानी करम दोषे पतित प्रानी।।
तों हीं पुरुष तों हीं नारी तों हीं थावर जंगम चारी। 
तों हीं अनल तों हीं वारी तों हीं पवन धरणि धारी।।
हमर दूषण क्षमा करब भगति भावे ह्रदय भरब। 
भक्तक सकल संकट हरब संसार सागर तैं हम तरब!!
करह दया देवी श्यामा कुशल राखह सबहि ठामा। 
दुर्जन मण्डलि करह क्षमा गोचर करथि चन्दा नामा।।
                               ( चन्द्र रचनावली )

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

646 . मैया महेशी कलेश हरु मोर , त्यागू ने देवी उदारपना।


                                     ६४६
                               श्रीमहेश्वरी
मैया महेशी कलेश हरु मोर , त्यागू ने देवी उदारपना। 
वाणी आहाँ छी सची छी अहाँ , हरिलक्ष्मी अहीं छी अनन्तघना।।
पालै छी विश्व चराचर कै पुनि घालै छी दानव दैत्य गना। 
मायासौं मोहित लोक करी पुनि विद्या अहीं छी आनन्दघना।।
तंत्र ने जानी ओ मन्त्र ने जानी कुकर्मपनामे ने मानी मना। 
भारी भरोस अहैंक सदा दया देखू करू कविचन्द जना।।
                                                                  ( तत्रैव )    

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

645 . जय जय गिरिवर नन्दिनि त्रिजगत वन्दिनि हे।


                                       ६४५
                                   श्री गौरी
जय जय गिरिवर नन्दिनि त्रिजगत वन्दिनि हे। 
जय जय जनभय भंजिनि असुर निकन्दिनि हे।
जय जय मृगपति चारिणि दुरित विदारिणि हे। 
महिष महासुरमारिणि शिव वसकारिणि हे 
जय जय मङ्गलदायिनि सुकृत विधायिनि हे। 
शंकर ह्रदय सरोजनाद दसगायिनि हे 
गौरी गुणाकर देवि सेवि सुख पावथि हे। 
अखिल मनोरथ पूर चंद्र्गुण गावथि हे 
                                                          ( तत्रैव )

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

644 . जय दिग्वसना।। फूजल चिकुर विकट दशना।।


                                     ६४४
                                 श्रीश्यामा
जय दिग्वसना।। फूजल चिकुर विकट दशना।।
प्रलय पयोद कान्ति धरानन जय जय अट्टहास व्यसना।। 
तन छन छिन्न मुण्ड असि निर्भय वर कर लह लह लह रसना।।
नर कर कृत कान्ची मुण्डावलि धरा असुर विग्रह ग्रसना।।
शोणित पान वदन सौं निसृत विस्तृत नियत धार लसना।।
तुअ उर दिनकर हिमकर ग्रहगण समन सतत वहै स्वसना।।
' चन्द्र ' चूड़ क्षेमंकरि श्यामा जय जय काल विभव अशना।।
                                           ( चन्द्र रचनावली )   

रविवार, 25 दिसंबर 2016

643 . से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज।


                                    ६४३
से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज। 
पूरिअ हमर मनोरथ हे , केकयि नहि बाज।।
नृपतिक ह्रदय ककर वश हे , ककरो नहि मीत। 
सौतिनि सामरि सौंपिन हे , मन हो भयभीत।।
तुअ शंकरि हम किंकरि हे , यावत रह देह। 
तुअ पद कमल नियत रह हे , मोर अचल सिनेह।।
रामचन्द्र सीतापति हे , होयता युवराज। 
त्रिभुवन आन एहन सन हे , नहि हित मोर काज।।
                                                       ( रामायण ) 

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

642 . रहू देवि दासी विषय सहाय।


                                    ६४२
रहू देवि दासी विषय सहाय। 
जय जय जगदीश्वर - वामांगी जय जय गणपति - माय।। 
अतिशय चिन्ता मन में छल अछि नृपति कठिन पण पाय।
दरशन देल भेल मन - वान्छित चिन्ता गेलि मेटाय।।
सकल सृष्टि कारिणि जगतारिणि महिमा कहल न जाय।
जगदम्बा अनुकूला अपनहि हम की देब जनाय।।
रामचन्द्र सुन्दर वर जै विधि होथि महीप - जमाय। 
जय जय जननी सनातनि सुन्दरि तेहन रचब उपाय।।
                                                     ( रामायण )  

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

641 . जय देवी महेश - सुन्दरी। हम छी देवि अहाँक किंकरी।।


                                   ६४१
जय देवी महेश - सुन्दरी। हम छी देवि अहाँक किंकरी।।
शिव देह निवास कारिणी। गिरिजा भक्त - समस्त तारिणी।। 
हम गोड़ लगैत छी शिवे। जननी भूधरराज - सम्भवे।।
जनता - मन - ताप - नाशिनी। जय कामेश्वरि शम्भु लासिनी।।
महादेव रानी सती श्री मृडानी। सदा सचिदानन्द रूपा अहैं छी।।
अहाँ शैल राजाधिराजाक पुत्री। धरित्री सावित्रीक कत्रीं अहैं छी।
अहाँ योगमाया सदा निर्भया छी। दया विश्व चैतन्य रुपे रहै छी। 
सदा स्वामिनी सानुकूला जतै छी। धनुर्भअंग चिन्ता ततै की सहै छी। 
अपने काँ हम गौरि की कहू। अनुकूला जनि में सदा रहू।।
हमरा जे मन मध्य चिन्तना। सबटा पूरब सहै प्रार्थना।।
                                           चन्दा झा ( रामायण ) 

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

640 . श्रीतारा-जय जय भयहरनि , मंजुहासिनि , मधुदमन


                                      ६४० 
                                  श्रीतारा
जय जय भयहरनि , मंजुहासिनि , मधुदमन कञ्जआसनि , शिवसेवित पद कमल तारिणी।।
नवल जलद मञ्जु भास , ज्वलित प्रेम भूमिवास , मुण्डमाल अंति विलास विपदहारिणी।।
तीन नयन अरुण वरन , विश्वव्यापि सलिल सरन ,
ललित धवल कमल युगल चरणधारिणी।।
लम्ब उदर खर्च रूप द्विपि अजिन कटि अनूप 
चपल रसन विकट दसन दुरित दारिणी।।
मुद्रापञ्च लसत माथ, खड्ग काति दहिन हाथ ,
बाम मुण्ड कुबल मौलि अक्षौभधारिणी।।
भनत हर्षनाथ नाम , जनक नगर नृपति काम ,
पुरिअ परम करुणधाम भक्ततारिणी।।
                                ( हर्षनाथ काव्य ग्रन्थावली )  

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

639 . श्रीवनदुर्गा - जय जय विंध्यनिवासिनि। तनु रूचि निन्दित दामिनि।।


                                      ६३९
                                श्रीवनदुर्गा 
जय जय विंध्यनिवासिनि। तनु रूचि निन्दित दामिनि।।
आनन शशधर मण्डल। तीनि नयन श्रुति कुण्डल।।
कनक कुशेशय आसन। वसय निकट पञ्चानन।।
शंख चक्र निरभय वर। कर धरु शशधरशेखर।।
तुअ पद पंकज मधुकर। हर्षनाथ भन कविवर।।
                              ( हर्षनाथ काव्य ग्रन्थावली ) 

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

638 .जय जगजननी जय जगजननी देहु सुमति मृगपति गमनी।


                                     ६३८
जय जगजननी जय जगजननी देहु सुमति मृगपति गमनी।
सरसिरुहासन विपदविनाशन कारिणि मधुकैटभदमनी।।
दिति सुत रञ्जन सुरगणभन्जन महिष महासुर बलदलनी। 
त्रिभुवनतारिणि महिषविदारिणि  धूसर नयन भसम करनी।।
 चण्ड  मुण्ड सिर खण्डनकारिणि उन्मातरक्तबीज शमनी। 
अतिबल शुम्भ निशुम्भ विनाशिनि निजजनसकल विपद हरनी।।
तुअ गुण निगम अगम चतुरानन कहि न सकत कत सहस्रफणी। 
अमर निशाचर दनुज मनुज शिर चिकुर कलित जित रकतमनी।।
तुअ पद युगल सरोरुह मधुकर हर्षनाथ कवि सरस भनी।।
                                       ( माधवानन्द नाटक )

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

637 . जय जय महिष विनाशिनि भगवति सिंहगमनि जगदम्बे।


                                    ६३६ 
                                              श्रीदुर्गा 
जय जय महिष विनाशिनि भगवति सिंहगमनि जगदम्बे। 
त्रिभुवनतारिणि विपदनिवारिणि सकल भुवन अवलम्बे।।
त्रिदश तपोधन दनुज मनुज गण चिकुर निकल अभिरामे। 
तुअ पद चिन्तन विमुख सतत मन किदहु होएत परिणामे।।
हमर दुरित मति जानि सकल गति करिअ न अतिशय रोषे। 
तनय रहित मति करय अनत गति कहिअ ककर थिक दोषे।।
तुअ गुण निगम अगम हरिहर विधि कहि न सकथि अनुपामे। 
अनेक जनम तप करथि जतन दय तुअ पद दरशन कामे।।
क्षमिय हमर अपराध कृपामयि करिअ अभय वर दाने। 
गिरिनन्दिनी पद पंकज मधुकर हर्षनाथ कवि भाने।।
                                                            ( तत्रैव )

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

636 . श्री सरस्वती-जय जय कुमति विनाशिनि देवि। सभ अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।


                                       ६३६
                                            श्री सरस्वती
जय जय कुमति विनाशिनि देवि। सभ अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।
तनु रूचि निन्दित कुन्दक भास। आनन रूचि शशि बिम्ब उदास।।
आसन धवल कमल शशि भाल। श्वेत वसन लस नयन विशाल।।
वीणा दण्ड कलश धर हाथ। जपमाला वर पुस्तक साथ।।
हर्षनाथ कवि मनदय भान। भगवति करिय अभय वरदान।।
हर्षनाथ                    ( उदाहरण नाटिका )  

635 . अनकही व्यथा !


                                      ६३५ 
                              अनकही व्यथा !
भाषा की समस्या हो सकती है , विषय से विषयांतर हो सकता है , मत से मतान्तर हो सकता है , तथापि आप एक बार मेरे भावों को आत्मसात करने का प्रयास करें , अन्य दोषों को नजरअंदाज करें। 
मैं बिहार के एक छोटे से शहर समस्तीपुर में पहली बार पदस्थापित हुआ। इस कंपनी की स्थापना १९५४ ई में भारत सरकार की प्रथम जीवन रक्षक दवा कम्पनी के रूप में हुई थी। प्रथम बार २४ - ०९ - १९८१ में TMR के रूप में बाजार से परिचय करवाया था। यह सेवा १५ - ०७ - १९८३ तक जारी रही। फिर ०६ - १० - १९८७ में पुनः सेवा शुरू कर पाया। 
देश अनेक झंझावातों के दौर से गुजर रहा है।  ब्रिटिश सरकार के स्वार्थपूर्ण पेटेंट १९११ को बदलने में हमें आजादी के बाद २३ वर्ष लगे और १९७० में हमारा पेटेंट एक्ट बना और जहाँ आजादी के बाद ६५ -/- हिस्सेदारी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की थी वहीँ १९८५ तक हम ७० -/- के हिस्सेदार हो गए और उत्पादन से लेकर तकनिकी तक में आत्मनिर्भर हो गए , परन्तु इस प्रक्रिया को उलटने का कार्य विदेशी दबाब एवं धन के बल पर देश की अस्मिता को वर्तमान प्रधानमन्त्री ने गिरवी रख दिया है। जिसकी प्रक्रिया पूर्व के प्रधानमंत्री के कार्य काल में ही प्रारम्भ हो गयी थी।  और हमारी खुशहाली की प्रक्रिया ही उलट गयी। हमारा देश जो विश्व में सबसे अधिक बेरोजगारी का दंश झेल रहा था उसमे लाखों रोजगारों को करोड़ों रुपये खर्च कर बेरोजगार बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी। 
साथियों प्रारम्भ में एच ए  एल में मात्र १३ एम् आर के द्वारा अस्पतालों में कार्य प्रारम्भ किया गया जो १९७९ के शुरू तक चलता रहा और १९७९ - १९८० में अस्पताल और ट्रेड सेक्टर में ६० एम् आर के द्वारा कार्य प्रारम्भ हुआ जो मुख्य रूप से इन एस ए थी वह भी जेनेरिक रूप में। उस समय भी एम् आर को कहा जाता था कि ट्रेड पर ध्यान दो और दवा अस्पताल का उपलब्ध रखा जाता था। मुख्य रूप से सैम्पल भी NSA ही होता था यह भी जेनेरिक रूप में और शार्ट एक्सपाइरी।  अपर्याप्त एवम अनियमित सैम्पल देकर TMR को कहा जाता था टारगेट पूरा करने के लिए। विजुअल ऐड का दवा की उपलभ्दता से कोई सरोकार नहीं होता था। परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में दवाइयां एक्सपायर हो जाती थी और खामियाजा एम् आर को नौकरी गँवा कर देनी पड़ती थी। लालफीताशाही चरम पे थी। 
दवाओं के मामले में बदनाम किये  गए  सार्वजनिक क्षेत्र के दो महँ योगदान को बहलाया नहीं जा सकता है  , पहला इसने दूसरे दवाओं की कीमतों को आशर्चजनक रूप से घटाया और दूसरा   में फैक्ट्री स्थापित करने पर मजबूर किया। 
क्या यह कहना मात्र एक आरोप होगा की हमारे देह के नेता और अफसर भ्रष्ट हैं , करोड़ों अरबों का घोटाला करने वाली सरकार का प्रधानमंत्री और पूरा कैबिनेट हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट का चक्कर लगा रही है , कुछ को सजा  है और कुछ  है। ऐसे  किसी सार्वजानिक कंपनी की बागडोर किसी के हाथ  हैं तो उनके स्वार्थ स्पष्ट होते हैं। अपने चापलूसों को उसमे भरते हैं और ऐसी परिस्थितियां पैदा करते हैं की वह  कंगाल हो जाये और वह सार्वजानिक संपत्ति उनके भाई भतीजे खरीद ले।  
क्रमशः 

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

634 . वलित चञ्चल चारु लोचनि भय विमोचनि सदय भगवति हे।


                                     ६३४
वलित चञ्चल चारु लोचनि भय विमोचनि सदय भगवति हे। 
रुचिर भूषण तनु विभूषित बिन्दु विलसित हनुमति हे !!
हरविहारिणि मुक्ति कारिणि भगततारिणि सुर शुभंगकरि हे। 
गिरिनिवासनि शुम्भनाशिनि बलिपलाशिनि रिपु भयंगकारि हे। 
चक्र शूल कृपाण शरधनु कुलिश तोमर उरग धारिणि हे। 
सिंहवाहिनि विभवदायिनि परमभाविनि महिषदारिणि हे।!
बादंलोहित देहशोभित कयल मोहित सकल अरिदल हे। 
स्फुरित चाप निनाद सुनि सुनि त्वरित हरषित पड़ल निजवल हे।!
भानुनाथ सुदान मांगथि संग कय तोहि नयन हुत भुग हे। 
श्रीमहेश्वर सिंह भूपति सुत विनोदित जिवथि युग - युग हे।!
                                                     ( तत्रैव ) 

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

633 . जय जय त्रिभुवन सुन्दरि भगवति कृत बहु विध वर रुपे।


                                     ६३३
जय जय त्रिभुवन सुन्दरि भगवति कृत बहु विध वर रुपे।
सिन्दुर पूर रुचिर तुअ अम्बर त्रिनयन वलित अनूपे।।
अरुण सरोरुह निहित चरण युग विहित वाल शशि भाले। 
ललित चतुर्भुज कलित अभय वर पुस्तक विरचित माले।।
तरुण वयस शिशु दिनकर रूचि तनु सतत पुरित मुख हासे। 
सुरगुरु सुरपति दुनुहुँ तुलित भेल जे जन तुअ पगु दासे। 
त्वरित दुरित चय भारनिकन्दिनि रचित मनोरम हारे। 
धरम करम उपगत रह ये जन तनिक परम सुख सारे।।
आगम चिलिखित तुअ गुन गाओल विमल नृत्य दिअ दाने। 
सकल सभा जय करू परसनि भय भानुनाथ कवि भाने।।
भानुनाथ ( प्रभावतीहरण नाटक )  

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

632 . सुमरि दुर्गाचरण - सारस भजिअ - मानस लाए।


                                   ६३२
सुमरि दुर्गाचरण - सारस भजिअ - मानस लाए। 
पुरन हे सखि कामना तुअ गौरी भक्त सहाए।।
देवता सभ विपति पड़ि गेल तखन कएल विचार। 
भजिअ सभ मिलि देवि दुर्गे अनि नहीं परकार।।
तखन सुरसरि तीर गए कह सखि आराधन भेल। 
छुटल सभ दुख मोदमय भए भवन निज सभ गेल।।
एहि उत्तर चित्रलेखा कएल दुर्गा भक्ति। 
गमन वाणि तखन भए गेल काज साधन शक्ति।।
रत्नपाणि विचारि भाखथि सुनिअ करिअ विचार। 
सतत दुर्गा चरण सेविअ आन नहि परकार।।
                                         ( हिस्ट्री ऑफ़ मैथिली लिटरेचर )