गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

632 . सुमरि दुर्गाचरण - सारस भजिअ - मानस लाए।


                                   ६३२
सुमरि दुर्गाचरण - सारस भजिअ - मानस लाए। 
पुरन हे सखि कामना तुअ गौरी भक्त सहाए।।
देवता सभ विपति पड़ि गेल तखन कएल विचार। 
भजिअ सभ मिलि देवि दुर्गे अनि नहीं परकार।।
तखन सुरसरि तीर गए कह सखि आराधन भेल। 
छुटल सभ दुख मोदमय भए भवन निज सभ गेल।।
एहि उत्तर चित्रलेखा कएल दुर्गा भक्ति। 
गमन वाणि तखन भए गेल काज साधन शक्ति।।
रत्नपाणि विचारि भाखथि सुनिअ करिअ विचार। 
सतत दुर्गा चरण सेविअ आन नहि परकार।।
                                         ( हिस्ट्री ऑफ़ मैथिली लिटरेचर )  

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