मंगलवार, 31 जनवरी 2017

674 . भगवति मम कल्याण करिय नित नमो भक्ति दिअ दाने।


                                      ६७४
                                 अन्नपूर्णा 
भगवति मम कल्याण करिय नित नमो भक्ति दिअ दाने।  
अन्नपुरिन मायामय जगगति शिवक धरनि श्रुति जाने।।
उदित दिवाकर सहस्र देह दुति लोचन तीनि विशाले। 
वाञ्छादातत्रि महेसि भाल ससि चित्रित वसन अमोले।।
शिवक नृत्य देखि मुदित सुमानस अन्न दान रत दाया। 
साधक अभीष्ट सिद्धि निधि दायिनि दुखनाशिनि जगमाया।।
त्रिकोण पदम् बिच षडङ्ग युवतिमय सुन्दर रूप विराजे। 
ब्राह्मी आदिक रूप तोहर थिक सर्वदायिनि जगदम्बे।।
रुद्रादिक तन धारिणि पूजित समपत्ति दायिनि नामे। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत पुरिय मनकामे।।

सोमवार, 30 जनवरी 2017

673 . सुधा सिन्धु बिच मणिमय मण्डप ता बिच मणिमय वेदि।


                                      ६७३
सुधा सिन्धु बिच मणिमय मण्डप ता बिच मणिमय वेदि। 
ता बिच रत्नसिंहासन ऊपर युगल चरण भय भेदी।।
रिपुक मौलि पर रहत सिंहासन प्रेतासन अभिरामे। 
कनक रुचिर तन तेज प्रकाशित बगलामुखि तसु नामे।।
पीत वसन अरु लेपन भूषण पीत विराजित हारे। 
अरि रसना कर सओ कर पीड़ित ता पर गदा प्रहारे।।
जे जन सुमिरत तुअ पद पंकज तकर पुरत अभिलाषे। 
आदिनाथ के सतत करिअ शुभ अशुभ हरिअ नित लाषे।।
                                            ( देवीगीत शतक ) 

रविवार, 29 जनवरी 2017

672 . भगवति हरि सतत दुखदारिद बगलामुखि तुअ नामे।


                                     ६७२
भगवति हरि सतत दुखदारिद बगलामुखि तुअ नामे। 
कनक सिंहासन पर तुअ पद युग तीनि नयन पुरु कामे।। 
पीतवसन तन चामीकर सन मुकुट निशाकर राजे। 
चम्पक माल विराजित पहिरन चारि बाहु छवि छाजे।।
मुद्गर पास वज्र रिपु रसना भूषण शोभित देहा। 
द्विष दामिनि तिनि लोकक चिन्तित निज जन पर अति नेहा।।
तुअ पद पङ्कज सुरमुनि सेवत शत्रुक करत विनाशे। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत पुरिय सभ आसे।।

शनिवार, 28 जनवरी 2017

671 . हे बगलामुखि शत्रु नाश करू निज जन पालिनि देवी।


                                    ६७१
हे बगलामुखि शत्रु नाश करू निज जन पालिनि देवी। 
अमृतसिन्धु बिच मणिमण्डप पर रत्नसिंहसान सेवी।।
ता पर तुअ पद अनउपमित छवि शोभित अति भयहारी।
पीताम्बर भूषण अनुलेपन पीत कुसुममय हारी।।
अतिशय असित चिकुरचय फूजल युगललोचन जनि कंजे। 
रिपुक वसन कर वाम सओ  पीड़ित दहिन गदा भय भंजे।
युगल भुजा तन कनकवरन दुति कुण्डल ललित कपाले। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय दिअ फल चारि अतूले।। 

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

670 . पहिरन वसन अरुण अति अभिनव बाल सुधाकर भाले।


                                 ६७०
पहिरन वसन अरुण अति अभिनव बाल सुधाकर भाले। 
उदित दिवाकर तनु दुति सुषमा लोचन तीनि विशाले।।
सुन्दर अक्षतमाल अभयवर शोभित भुज पुनि चारि। 
अरुण कमल ऊपर तुअ पदयुग सुमिरत लह फल चारि।। 
वेद पुरान भेद नहि पावत ब्रह्मादिक धर ध्याने। 
जपत नाम तुअ पुरत मनोरथ अनुछन बाढ़त ज्ञाने।।
आदिनाथ के दहिनि भए रहु निशिदिन त्रिपुरा बाले। 
सुत यश सुख धन चारि पदारथ मंगल दय सभ काले।।
                                                                                     ( तत्रैव )

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

669 . श्रीत्रिपुरसुन्दरी - अभिनव उदित दिवाकर तन रूचि बाल निशाकर भाले।


                                     ६६९
                             श्रीत्रिपुरसुन्दरी 
अभिनव उदित दिवाकर तन रूचि बाल निशाकर भाले। 
अतिशय रक्त वसन पहिरन शुचि लोचन तीनि विशाले।। 
कल्पद्रुमजित बाहुं चारि तुअ सभ जग पालन हारे। 
सर अरु पास धनुष इक्षुदण्डक अंकुस सहित अपारे।।
श्रीयुत चक्रकमल पर पदयुग सुमिरत पुर अभिलाषे। 
विधि हरिहर तुअ पद युग सेवक आगम निगम सुभाषे।।
त्रिभुवन अतुलित रूप तोहर थिक त्रिपुरसुन्दरी देवी। 
आदिनाथ के पुरिय मनोरथ नित प्रति तुअ पद सेवी।।
                                                ( तत्रैव )

बुधवार, 25 जनवरी 2017

668 . प्रकृति पुरुष शिव - शक्ति। निर्गुण सगुण सुभक्ति।


                                     ६६८
प्रकृति पुरुष शिव - शक्ति। निर्गुण सगुण सुभक्ति। 
मातृ पितृ जगजान। रात्रि दिवस अनुमान। 
योग भोग युत देह। भगवति पद युग नेह। 
आदिनाथ कवि भान। दुहु मिलि करू कल्याण। 
( देवीगीत शतक - प्रबन्धक बाबू श्री त्रिलोकनाथ मिश्र , सीताराम प्रेस , काशी ) 

बुधवार, 18 जनवरी 2017

667 . काली तारिणि त्रिपुरसुन्दरी भुवनेशी जगमाया।


                                      ६६७
काली तारिणि त्रिपुरसुन्दरी भुवनेशी जगमाया। 
भैरवि देवि प्रचण्ड चण्डिका धूमावति करू दाया।।
बगलामुखि मातङ्गिनि कमला निशदिन करू प्रतिपाले।
भक्ति अचल जस सुत धन मङ्गल दय अभिनव सुख जाले।।
मुदित रहय नित बिसरि दोष सभ अनुछन पुरु अभिलाखे।  
जगत जननि जगबाहर हम नहि कि कहु हम दुख लाखे।।
तुअ पद प्रबल सुमिरन कै नित रहलहुँ तोहरे भरोसे। 
आदिनाथ पर कृपा करिये दाहिन रहु तजि दोसे।।
                                                         ( तत्रैव ) 

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

666 . भगवति तुअ पद ललित मनोहर कमल युगल छवि छाजे।


                                     ६६६
भगवति तुअ पद ललित मनोहर कमल युगल छवि छाजे। 
चम्पकली अंगुलि अति सुन्दर नख दुति चन्द्र विराजे।।
एड़ी ललित इन्द्र वारुणि सम चारु फल सोभे। 
कनक गुलाब रंग गुल्फ जुग शंकर - मानस लोभे।।
कामधेनु चिन्तामणि कल्पतरु पदमा सहित सुवासे। 
आदिक सुर असुर जगत भरि निज जन पुरित आसे।।
अतुलित अन्त उपमति पद पंकज आदिनाथ धर ध्याने। 
सुत सम्पत्ति सुख धन मंगल दै सतत करिये कल्याने।।
                                                                    ( तत्रैव )  

सोमवार, 16 जनवरी 2017

665 . भगवति चरण कमल युग रे सेवल सुखदाई।


                                     ६६५
भगवति चरण कमल युग रे सेवल सुखदाई। 
मोर मानस भेल मधुकर रे लुबुधल मन लाइ।।
विधि हरिहर नित सेवल रे श्रुति सम्मति जाने। 
चारि पदारथ लहि लहि रे ह्रदय धरत ध्याने।।
जे जन समुरिय निश दिन रे तसु पूरन कामा। 
विपति दूरि सुख उपगत रे पालति शिव - वामा।।
नाम जपत मुद मंगल रे नाशत अज्ञाने। 
आदिनाथ रहु दायिनि रे दै दै वरदाने।।
                                                        ( तत्रैव ) 

रविवार, 15 जनवरी 2017

664 .भगवति पद पंकज युग ध्यावति विधि हरिहर सुर राजे।


                                     ६६४
भगवति पद पंकज युग ध्यावति विधि हरिहर सुर राजे।जग पूजित सभ लोक विदित भेल साधन निज निज काजे।।
तुअ वर पाबि भेल अतिबल सुर भोगत निज निज काजे। 
अजय अमर भै कामरूप धै दिख दलि अति छवि छाजे।।तुअ बल पाबि चराचर मुनिगण महिमा अतुल विराजे। 
आगम निगम तंत्र मन्त्र मय नारि पुरुष तुअ साजे।।
आदिनाथ प्रति करिये दाया नहि तो हसत समाजे।।
कृपा युक्त भै पालिय निशिदिन नहि तो तोहरे लाजे।।
                                                                ( तत्रैव ) 

शनिवार, 14 जनवरी 2017

663 . भगवति तुअ पद पिंजर जान। वसत हमर मन हंस समान।।


                                      ६६३
भगवति तुअ पद पिंजर जान। वसत हमर मन हंस समान।। 
तुअ पद कंज विनिन्दित कंज। मोर मन मधुकर वस अनुरंज।।
तुअ पद युग चिंतामणि तूल। मोर मन याचत भक्ति समूल।।
आदिनाथ कहि कहु परमान। आदि सनातन करू कल्याण।।
                                                     ( तत्रैव ) 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

662 . हम अति विकल विषय रस मातल भगवति तोहर भरोसे।


                                      ६६२
हम अति विकल विषय रस मातल भगवति तोहर भरोसे।
अशरन शरण हरण दुख दारिद तुअ पद पङ्कज कोशे।।
विधि हरि शिव शनकादिक सुरमुनि पाबि मनोरथ दाने।तुअ गुण यश वरणन कर अनुछन वेद पुराण बखाने।।
जे तुअ साधक पुरल तनिक मन अवसर आएल मोरा। 
अरु अभिलाख सतत वरदाइनि करिय विनय कछु तोरा।।
आदिनाथ पद कृपा युक्त भय निशि दिन करू कल्याणे। 
सुत सम्पत्ति सुख मुद मङ्गल दै चारि पदारथ दाने।।
                                                      ( तत्रैव )  

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

661 . नहि जग बाहर हम जगतारिणि तोहे जगदम्ब भवानि।


                                    ६६१
नहि जग बाहर हम जगतारिणि तोहे जगदम्ब भवानि। परपुत जानि मोहि ज्यों त्यागब जगजननी पद हानि।।
ज्यौं सुत करत अनेक उपद्रव जननि छमति सब दोषे। 
रोख बिसारि माय प्रतिपालति पुत्र करत अमरोषे।।
तुअ प्रेरित हम करिय अहोनिशि ते नहि मोर अपराधे।।
तुअ माया तहँ मेटि पाप सभ आनक किछु नहि साधे।।
तोहर भरोसे धैल हम सभ खन तुअ बल मन अवधारि। 
तुअ प्रताप हम शत्रु मारि जग सुख भोगब शिवनारि।।
पूरित करिय अभिलाख निरन्तर दै पद भक्ति उपाम। 
आदिनाथ पै कृपा करिय नित दाहिनि रहु सब ठाम।। 
                       आदिनाथ  ( मैथिली भक्त प्रकाश )

बुधवार, 11 जनवरी 2017

660 . दुर्गा - जय जय दुर्गे अनुपम रुपे , नाम उदित जगदम्बे।


                                       ६६०
                                      दुर्गा
जय जय दुर्गे अनुपम रुपे , नाम उदित जगदम्बे। 
तुअ पदपंकज सेवि चरण मन , दोसर नहीं अवलम्बे।।
तुअ गुणवाद करय के पाबय , लिखि नहि सकथि महेशे।
निर्गुण भय सगुण करू धारण , बिहरथि भगन अकाशे।।
' भैअनि देवी ' गहल चरण युग , हरु न हमर दुख भारे।।
                                              भैअनि देवी ( तत्रैव )

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

659 . चण्डिका - जय कमलनयनी कमल कुच युग , कमल चंवरनि शोभिता।


                                    ६५९
                                चण्डिका
जय कमलनयनी कमल कुच युग , कमल चंवरनि शोभिता। 
कमलपत्र सुचरणराजित , दैतयदल मद गज्जिता।।
अष्ट भुजबल महिष मर्दिनि , सिंहवाहिनि चण्डिका। 
दाँत खटखट जीभ लहलह , श्रवण कुण्डल शोभिता।।
शूल - कर अर्धङ्ग शंकरि , नाम आदि कुमारिका। 
'श्रवण सिंह ' प्रसाद मांगथि , उचित दिअ वर देविका।।
                                               श्रवणसिंह ( तत्रैव )  

सोमवार, 9 जनवरी 2017

658 . दुर्गा - दुर्गा लेखा दय दय तोर।


                                      ६५८
                                      दुर्गा
दुर्गा लेखा दय दय तोर। 
तीनि तीनि कय दय दय दुर्गा , लेखा दय दय तोर। 
नन्द तेरो तात यशोदा , गुरुजन तेरो भ्राता। 
और पद छाड़ि तुअ पद सेविय , ताकर ऊपर मोती। 
अंग - अंग जे ज्योति विराजय , सोती मोती मोती।।
कुण्डल डोलय बेसरि लोलय , कटि किंकिणियाँ बोलय। दत्त नरसिंह भवानी तेरो , डोलय लोलय बोलय।।
                                    नरसिंहदत्त ( तत्रैव )  

रविवार, 8 जनवरी 2017

657 . जय काली जय तारा भुवना , षोडसी मन भाबै।


                                    ६५७
जय काली जय तारा भुवना , षोडसी मन भाबै। 
धूमावति भजु बगला छिन्ना , भैरवी सुख पाबै।।
मातंगी भजु कमला माता , लक्ष्मीरूप कहाबै। 
दुर्गा दुर्गति नाशिनी गिरिजा , चण्डी रूप जनाबै।।
चामुण्डा भजु कौशिकी दयानी , महामोह मेटि जाबै। 
कामख्या भजु विंध्यवासिनी , ज्वालामुखि जग भावै।।
गुह्यकालि मीनाक्षी विमला , मंगल गौरि देखाबै। 
राजेश्वरि सिद्धेश्वरि सीता , गंगा गंडकि राबै।।
कौशिकि कमला बाग्वति भजिले , चिरंजीव द्विज गावै।। 
                                चिरञ्जीव ( तत्रैव )

शनिवार, 7 जनवरी 2017

656 . सुरसरि - जन के पीर हरे , सुरसरि हे।


                                     ६५६
                                  सुरसरि
जन के पीर हरे , सुरसरि हे। 
देशदेश केर यात्री आएल , दर्दर - क्षेत्र भरे।।
सरयू आबि मिललि संगम भय , त्रिकुटी स्थान घरे। 
ब्रह्म कमंडलु जटा शंकरी , विष्णुक चरण परे। 
सेवा कय भागीरथ लायल , पतित अनेक तरे। 
धर्म्मक देनी पापक छेनी , सन्तक चरण परे।।  
सकल पतित केँ तारल गंगा ' दास ' किएक ने तरे।।
                                                 दास    ( तत्रैव )

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

655 . हेमन्त - किशोरी - जननि ! अब जनु होइअ भोरि।


                                        ६५५
                              हेमन्त - किशोरी
जननि ! अब जनु होइअ भोरि। 
पूजा ध्यान एकओ नहि जानिअ , तोहर चरण गति मोरि ।।
सुत अपराध कोटि जँ करइछ , माता होए न कठोर। 
जओं मोर दोष लिखल बसुधा भरि , उदधि करिअ मसि घोरि।।
सब विधि आस राखल देवि तोहर , सुनु - सुनु हेमंत - किसोरि।
जलपादत्त विनति करू भगवति , तोहे देवि अधम उधोरि।।
जलपादत्त  ( हिन्दी साहित्य और बिहार भाग - २ )

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

654 .जय गंगाजी जगजननी , जय सन्तन सुखदाई।


                                     ६५४
                                    गंगा
जय गंगाजी जगजननी , जय सन्तन सुखदाई। 
चरण कमल अनुराग भागसौ , लय ब्रह्मा उर लाई।।
चारि पदारथ अछि जगजीवन , वेद विमल जस गाई। 
भक्त भगीरथ उनके कारन , प्रगटि अवनि मँह आई।।
तेज प्रताप कहाँ धरि बरनब , शंकर सीस चढ़ाई। 
हेम - शिखर पर ललित मनोहर उर जयमाल सोहाई।।
ताकर नाम लेत जम किंकर करुणा करू फिरि जाई। 
राम नाम गंगा कलि केवल , दास और ने उपाई।।
' कान्हरदास ' आस रघुवर के हरिख निरिख गुनगाई।।
 कान्हरदास- हिन्दी साहित्य और बिहार , भाग - २ , राष्ट्रभाषा परिषद्  

बुधवार, 4 जनवरी 2017

653 . हे दयामयि होउ सहाय। लक्ष्मी स्वरूपा तोहें कमला माय।।


                                       ६५३
                                     कमला
हे दयामयि होउ सहाय। लक्ष्मी स्वरूपा तोहें कमला माय।।
तुअ जल सभ जन भक्ति सौं नहाय। बिन श्रम सुखित सरगपुर जाय।। 
निर्मल अमृत जल दर्शन पाय। नित दिन तिरहुति पाप नशाय।।
सत्वर करू देवि तेहन उपाय। शिवक चरण ' चन्द्र 'मन लपटाय।।  
                                               ( चन्द्र रचनावली )

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

652 . जय गाधिसुते , जय जय कौशिकि देव सुते।।


                                       ६५२
                                 श्रीकोशिका
जय गाधिसुते , जय जय कौशिकि देव सुते।।
जय जय विश्वामित्र सहोदरि जय जय सकल लोक महिते। 
मिथिला पूर्व सम सांस्थायिनि जय जय सकल सगुण सहिते।।
पाहि पाहि परमेश्वरि मामिह सुरसरिता साकं मिलिते। 
तीव्र तरंग सुतातिभिल्लरलिते जय जय चपलवेग चलिते।।
जय जय चन्द्रक वेर लघनाशिनि जय जय देवि कलुष रहिते। 
पापराशि विध्वंसिनि सततं जय जय निज जन परम हिते।।
                                              ( तत्रैव ) 
  

सोमवार, 2 जनवरी 2017

651 . सब सकल देवि मोर कृत दोष हे। नै करिय सुरसरि शिशु पर रोष हे।।


                                      ६५१ 
सब सकल देवि मोर कृत दोष हे। नै करिय सुरसरि शिशु पर रोष हे।
तुअ बल केवल ह्रदय भरि पोष हे। धयल शरण सुनि सुजस सुबोध हे।
की करत सञ्चित अनन्त रत्नकोष हे। की करत पामर सहसतत तोष हे।
करू करू गंगा देवी मोरा निरदोष हे। चन्द्र मन हो निराश यम कोप चोष हे।
                                                   ( चन्द्र रचनावली )

रविवार, 1 जनवरी 2017

650 .गंगा तुअ महिमा कहल नहि जाय हे। शंभु माथा राखल चढ़ाय हे।


                                   ६५०
गंगा तुअ महिमा कहल नहि जाय हे। शंभु माथा राखल चढ़ाय हे।
पतित उधार नहि दोसर उपाय हे। सुयश पताका तुअ जग फहराया हे। 
वेद ओ पुरान गण देलनि सुनाय हे। तुअ तट सेवितहिं निरमल काय हे।  
चन्द्र कवि कर जोड़ि कहथि सुनाय हे। अन्त नै बिसरू मोरा सुरसरि माय हे    
( चन्द्र रचनावली )

649 . तुअ बिनु आज भवन भेल रे , घन विपिन समान।


                                   ६४९
                              श्रीसीता 
तुअ बिनु आज भवन भेल रे , घन विपिन समान। 
जनु ऋषि सिधिक गरुअ भेल रे , मन होइछ भान।।
परमेश्वरि महिमा तुअ रे , शिव विधि नहि जान। 
मोर अपराध छमब सब रे , नहि याचब आन।
जगत जननि का जग कह रे , जन जानकि नाम। 
नैहर नेह नियत नित रे , रह मिथिला धाम।।
शुभमयि शुभ शुभ सब दिन रे , थिर पति अनुराग। 
तुअ सेवि पुरल मनोरथ रे , हम सुखित सुभाग।।
                                            ( रामायण )