रविवार, 1 जनवरी 2017

650 .गंगा तुअ महिमा कहल नहि जाय हे। शंभु माथा राखल चढ़ाय हे।


                                   ६५०
गंगा तुअ महिमा कहल नहि जाय हे। शंभु माथा राखल चढ़ाय हे।
पतित उधार नहि दोसर उपाय हे। सुयश पताका तुअ जग फहराया हे। 
वेद ओ पुरान गण देलनि सुनाय हे। तुअ तट सेवितहिं निरमल काय हे।  
चन्द्र कवि कर जोड़ि कहथि सुनाय हे। अन्त नै बिसरू मोरा सुरसरि माय हे    
( चन्द्र रचनावली )

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