सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

693 . भगवती ----- जयसि भगवती भक्त - तारिणि वैरि वारिणि हे।


                                       ६९३
                                   भगवती
जयसि भगवती भक्त - तारिणि वैरि वारिणि हे। 
पाद लम्बित चिकुर धारिणि - कोटि दिनकर - भासिनि।।  
अभयवर करवाल मानुष - मुण्ड धारिणि हे। 
कर मयादभुत कांजि शालिनि वेद बाहु विराजिनि।।
भीषण ललदुग्र रसना घोर हासिनि हे। 
शयित शवगत पद सरोजिनि घनघनाघन रोचिनि।।
योगिनी गण संग रुचिर स्वैरचारिणि हे। 
कालिके ललितेश पालिनि देवि किल्विष नाशिनि।।
दीनबन्धु जनानुकम्पिति भव सुधारिणि हे।
                     दीनबन्धु झा ( मैथिल भक्त प्रकाश )

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

692 . जगद्धात्री - सिंह पर एक कमल राजित ताहि उपर भगवती।


                                ६९२
                           जगद्धात्री 
सिंह पर एक कमल राजित ताहि उपर भगवती। 
उदित दिनकर लाल छवि निज रूप सुन्दर धारती। 
पद सरोरुह जगत सेबित चारि भुज लसि राजती। 
कर धनुष गहि शंख गहि अरु चक्र गहि जगपालती।।
सरद पूरन चन्द्र वदनी नयन तीनि भयावनी। 
मणि मुकुट भूषण सहित पट झलक लाल सोहावनी।।
 नाभि कुवलय नाभि तिरबलि बनै लसि अति शोभती। 
शुभ नाग के उपवीत कान्धे हार मुकुतामणि लती।।
रत्न दीप विशाल वासिनि शम्भु संग विराजती। 
ब्रह्मरूपा जगत व्यापित सकल तेज सोहावती।।
सकल मुनि गण नाग आदिक करत ध्यान महामती। 
सुर विरंचि आदि सेवित वन्दिता - सुर भारती।।
परम - पावन नाम जाके पाप सभ को टालती। 
सदय रूपा सतत धन दय कृपा को अनुसारती।।
यश बख़नत वेद आदिक जगत धात्री सुखवती। 
शरण गहि नित ध्यान करू मन सतत छन प्रतिपालती।। 

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

691 . जय जय जय वर दिअ हे गोसाउनि तारिणि त्रिभुवन देवी।


                                     ६९१
जय जय जय वर दिअ हे गोसाउनि तारिणि त्रिभुवन देवी।  
सिंह चढ़ल मैया फ़िरथि गोसाउनि अतिबल भगवति चंडी।।
कट कट कट मैया दन्त सबद कएल गट गट गिड़लनि काँचे। 
घट घट कय मैया शोणित पीलनि मातल योगिनि साथे।।
दुर्गादत्त पुत्र अहिंक थिक जननी एकहु असुर नहि बाँचे।।
                              ( मिथिला संस्कार गीत )

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

690 . तुअ पद कमल सतत हम पूजब कयल अछि मन अभिलाषे


                                      ६९०
तुअ पद कमल सतत हम पूजब कयल अछि मन अभिलाषे।  
करहु कृपा दाया करू जननी मम गृह करहु निवासे।।
हम अति विकल विषय मे पड़लहुँ तारिणि अहिँक भरोसे। 
परम मगन भै पुरहु मनोरथ शिव संग करिय निवासे।।
दुर्गादत्त पुत्र अहिंक प्रिय जननी तारिणि अहिंक अछि आसे।।
                  दुर्गादत्त सिंह ( मैथिल भक्त प्रकाश ) 

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

689 . गंगा -- पाप विनाशिनि पावनि भगवति गंगा विष्णु स्वरूपे।


                                      ६८९
                                     गंगा 
पाप विनाशिनि पावनि भगवति गंगा विष्णु स्वरूपे। 
धर्ममयी द्रवरूप सनातनि पापदहन अनुरूपे।।
स्नान पान निर्वाण सुदायिनि दिव्यलोक सोपाने। 
तीर्थपवित्र सरित अति निर्मल नाम जपत कल्याने।।
विष्णुपाद सँ जनन शम्भु सिर जटाजूट थिक वासे। 
सिन्धुक कामिनि मन्दाकिनि पुनि भागिरथी पुरु आसे।। 
जह्नुसुता हरिनारि भोगवति सतत धरिय तुअ ध्याने। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय निसदिन करू कल्याने।।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

688 . भगवति भवभय दुःख निकन्दिनि अपरूप थिक तोर माया।


                                     ६८८
भगवति भवभय दुःख निकन्दिनि अपरूप थिक तोर माया।
सभ जग मय तन नित्य सनातनि करिय अहोनिशि दाया।। 
अनुछन निजपद भक्ति अचल दय दाहिनि रहु जगदम्बे। 
हरिय दुसह दुख रोग शोक जत शत्रु संहारिय अम्बे।।
विधि हरिहर सहसानन आदिक वेद भेद नहि जाने। 
एको नखक अग्रभरि महिमा के करि सकल बखाने।।
जगतजननि तोहे कृपायुक्त भय नित्य करिअ कल्याने। 
आदिनाथ के सतत दोष छमि दय फल चारि सुदाने।।  

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

687 . भगवति भवभय हारिणि तारिणि कारिणि सकल जहाने।


                                      ६८७
भगवति भवभय हारिणि तारिणि कारिणि सकल जहाने।
विधि हरि हर तुअ पदयुग सेवक वेद भेद नहि जाने।।
नाना तन धय जगत वेआपित निज इच्छा थिक रुपे। 
मायामय सभ घट घट वासिनि नित्य अनित्य सरूपे।।
जगजननि जगबाहरि हम नहि करिय सतत प्रतिपाले। 
मन अभिलषित पुरित करू निशिदिन हरिय विपति सभकाले। 
आदिनाथ के पुरिय मनोरथ दिअ निज भक्ति सुदाने।।  

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

686 . भगवति तुअ पद युगल सरोरुह अमल सुधारस जानी।


                                      ६८६ 
भगवति तुअ पद युगल सरोरुह अमल सुधारस जानी। 
भ्रमर हमर मन वसत निरन्तर जरा मृत्यु भय मानी।।
तुअ शरणागत बचत काल सँ रोग शोक नहि व्यापे। 
माया मोह जल सभ काटत यम पुनि थर थर कापे।।
जे जन सुमिरत जपत नाम तुअ से जन शिव समतूले। 
मन अभिलाष पुरत तसु अनुछन विधि लिपि मेटल मूले।।
ऋण के नाशिनि नाशि शत्रुकेँ छमिय हमर अपराधे। 
आदिनाथ के पुरित करिय नित सकल मनोरथ साधे।।

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

685 . आदि सनातनि नित्य जगतमय निर्गुण सगुण सनेह।


                                      ६८५
आदि सनातनि नित्य जगतमय निर्गुण सगुण सनेह। 
तीनि शक्ति त्रिगुणा तन भगवति नारि पुरुषमय देहे।।
विधि हरिहर अरु शेष ने जानत ततमत कय रहु वेदे। 
एहि सँ आन जानत के महिमा जे नहि जानत भेदे।।
तोहरहि सओ सभ जग थिक रचना तन्त्र मन्त्र श्रुति सारे।  
चारु आश्रम कर्म चारि पुनि इत्यादिक संसारे।।
कर्म क्रिया कर्ता तोहे ईश्वरि मायामय अनुमाने। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याने।।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

684 . शीतला -- रासभवाहिनि शीतल देवि। थिकिह दिगम्बरि सभ जग सेवि।।


                                    ६८४
                                शीतला 
रासभवाहिनि शीतल देवि। थिकिह दिगम्बरि सभ जग सेवि।।
मार्जनि कलस दुअओ करलाय मस्तक ऊपर सूप देखाय।।
पापरोगनाशिनि जग माय। सुमिरत भगत सकल सुख पाय।।
दाह पीड़ित कय शीतल भाष। छूटत रोग पुरत अभिलाष।।
पाप रोगक नहि आन उपाय। एक तुअ पदयुग विपति न खय।
उदक मध्य पूजत धरी ध्यान। तेकरा घर नहि रोग पयान।।
आधि व्याधि ग्रह दोष नसाय। निज सेवक पर सतत सहाय।।
आदिनाथ के दिअ वरदान। पुरु अभिलाष करिअ कल्याण।।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

683 . दक्षिण काली ------ भगवति जगभरि जोति प्रकाशित दक्षिणकाली नामे।


                                    ६८३
                              दक्षिण काली
भगवति जगभरि जोति प्रकाशित दक्षिणकाली नामे। 
नवयौवन तन सजल जलद रूचि कुच उन्नत अभिरामे।। 
शिशु शशिभालहिं बदन भयानक विकट दसन फुंज केशा। 
लहलह रसन सोनितसँ भीजल असित श्रवित सृकदेशा।।
शव दुइ कुण्डल कान नयन त्रय भीम भयानक रावे। 
सघन पाँति कय शवकर गाँथल कटि पहिरन रूचि पावे।।
खर्ग मुण्ड दुई वाम भुजामह दहिन अभय वर दाने। 
चारि भुजा उर मुण्डमाल लस वस नख निसि वसु जाने।।
शिव शव ऊपर तुअ पदयुग लस वास रुचय समसाने। 
सिवा चतुर्दिश योगिनिगण  युत आनन्दित करू गाने।।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याणे। 
सुत सम्पति सुख मंगल मुद नित दाहिनि रहु दय दाने।।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

682 . भैरवी -------- अयुत दिवाकर उदित देहधुति रक्त पटम्बर शोभे।


                                        ६८२
                                       भैरवी
अयुत दिवाकर उदित देहधुति रक्त पटम्बर शोभे। 
रुधिर लेपितमय पीन उरजमुख लोहित कमल समाने।।
रत्नमुकुट शशधर सिर शोभित ह्रास ललित मृदुमाने। 
पुस्तक अभय वाम दुअओ कर अक्षमाल वरदाने।।
दक्षिण युगल चारि कर राजित निज जन पालित माने। 
शत्रु संहारिणि भैरवी भगवति विधि हरिहर धर ध्याने।।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याणे।।  

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

681 . भुवनेश्वरि ------ भगवति जय भुवनेशि ललित छवि वसन भूषण युत देहा।


                                    ६८१
                                भुवनेश्वरि
भगवति जय भुवनेशि ललित छवि वसन भूषण युत देहा।   
अतिशय असित चिकुर अतिचिक्कन ता बिच सिन्दूर रेहा।।
बाल दिवाकर बिम्ब अरुन्धुति लोचन तीनि विशाले।।
त्रिभुवन सुषमा उपमालज्जित मधुर हास अति शोभे। 
मणिमय खचित कीरीट बलित शिर उपमा त्रिभुवन लोभे।।
वाम उभयकर शुभग अभयवर दक्षिण अङ्गस पाशे। 
भूपुर बीच भुवन दल षोडस नसु दल कमल सुभासे।।
ता बिच अङ्गकोण मधि पदयुग सुखद ध्यान भय नासे। 
के बरनत तुअ चरण के महिमा आगम निगम संत्रासे।।
विधि आदिक सुरमुनि तुअ सेवक वरदायिनि जगदम्बे। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय निज पद दय अवलम्बे।।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

680 . भगवति रूचि तुअ कामचार नित जगतजोति जगमाया।


                                       ६८०
भगवति रूचि तुअ कामचार नित जगतजोति जगमाया।  
सकल असंभव तुअ बस संभव करिय अहोनिसि दाया।।
रविमण्डल बिच कालकोश पर त्रिकोण रेख अति राजे। 
ता बिच रति मनसिज रतिविपरित करत सुख साजे।।
ता ऊपर पदयुगल कमल लस उदित भानु दुति शोभे। 
उरज विशाल माल रिपु शिर युत फणि उपवीत सुशोभे।।
खरग दहिनकर वाम अपन सिर अति विकराल विराजे। 
फूजल चिकुर दशन कटकट कर लहलह रसन सुधाजे।।
निजगण रुधिर धार बह ऊपर तीनि बलित अति धीरे। 
दुइ दिश योगिनि दुइ दुइ पीवति एक बपन मुख गीरे।।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याने। 
सुत सम्पति सुख मङ्गल मुद नित चारु फल कम दाने।।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

679 . छिन्नमस्ता -- नाभिकमल बिच बीच अरुणरुचि राजित दिनमणि बिम्बे।


                                  ६७९ 
                           छिन्नमस्ता 
नाभिकमल बिच बीच अरुणरुचि राजित दिनमणि बिम्बे। 
ता पर योनि चक्र पर रतियुत मन्मथ कर अवलम्बे।।
रति विपरीत ऊपर तुअ पदयुग कोटि तरुण रवि भासे। 
काटल सिर कर वाम प्रकाशित दक्षिण काति प्रकाशे।।
दिग अम्बर कच फूजल निज शिर काटल शोणित पीबे। 
बाल दिवाकर रुचिर कान्ति लस लोचन तीनि सुभावे।।
तीनिधार वह रक्त उरध भय मध्यधार निज मूखे। 
दुइ दिस योगिनि पिबत धार दुइ अति आनन्दित भूखे।।
तडितलोल युगलोचन रसना कटकट दसन सहासे। 
विषधर माल शत्रु शिर मालिनि सुरपालिनि द्विष नासे।।
विधि आदिक सुर तुअ पद सेवक प्रचण्ड चण्डिका देवी। 
अचिन्त्यरूप तुअ जगत जोतिमय योगीन्द्रादिक सेवी।।
उत्पत्ति स्थिति सहति कारिणि तीनि रूप गुण माया। 
तीनिलोक मह सभ घट वासिनि करिय अहोनिसि दाया।।
जगतजननि तोहे जगत वेआपित नारि पुरुषमय आनी। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय दाहिनि रहिय भवानी।।  

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

678 . मातङ्गिनी -- कीरक समरूचि ललित श्याम तनु मणिमय भूषण देहा।


                                     ६७८
                               मातङ्गिनी  
कीरक समरूचि ललित श्याम तनु मणिमय भूषण देहा।मणि मुक्तादिक हार सुलक्षाणि भाल बाल शशि रेहा।।
मधुरहास मुखमण्डल मण्डित लोचन तीनि सुभासे। 
विधि आदिक सुर चरण सुसेवित पहिरन शुचि पटवासे।। 
रत्नसिंहासन पर तुअ पदयुग षोडस वयस विराजे। 
असि अङ्गकुस लस दहिन हाथ युग पाश खेट दुइ वामे।।
अष्ट सिद्धिमय हरिहर सेवत मातङ्गिनि तुअ नामे।।
सुरनर मुनि जग ध्यान धरत नित आगम निगम बखाने। 
भुक्ति सुख आदिक पावत सतत लहत कल्याने।।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय दाहिनि रहु जगमाया। 
चारि पदारथ सुत धन मंगल दय करि करू नित दाया।।

677 . भगवति विदित श्यामरुक्ष तनु धूमावति तुअ नामे।


                                      ६७७
                                  धूमावती
भगवति विदित श्यामरुक्ष तनु धूमावति तुअ नामे। 
केसपास अति लम्बित फूजल गगन देह अभिरामे।।
कलह प्रेममय मलिन वसन रूचि विकट दसन छवि छाजे।   
क्षुधित सतत मन दीन त्रिलोचनि तरल सुभावहिं राजे।।
मन उद्वेग दुसह अनुछन जन महिमा जगभरि जाने। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याने।।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

676 . द्वीपी अजिन कटिदेश भीमतनु लम्बोदरि अति खर्बे।


                                      ६७६
                                   तारिणी
द्वीपी अजिन कटिदेश भीमतनु लम्बोदरि अति खर्बे।
अस्ति चारि बिच खप्पर राजित भाल भयानक गर्वे।।
पङ्कज ऊपर एक चरण तुअ तापर दुतिय विराजे। 
नखरुचि शुचिसम अमृत हासयुत नवयौवन छवि छाजे।।
खर्ग कर्त्तृयुग दक्षिण कर लस मुण्ड कमल दुइ बामे। 
शोभित भाल अक्षोभ महाऋषि तारिणि सतत सकामे।।
दन्तरदन्त विकाश त्रिलोचनि लहलह रसन सहासे। 
उदित दिवाकर बिम्ब कान्ति तन ज्वलित चिता थिक वासे।।   
जटाजूट अतिपिन्गल शोभित वेद भेद नहिं जाने। 
कंजज श्रीपति सहित उमापति सतत धरत तुअ ध्याने।।
आदिनाथके दहिनि भय रहु सतत करि कल्याने। 
कृपायुक्त भय दोष छमा कय चारु फल दय दाने।। 

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

675 . भगवति जलधिसुते शुभकारिणि घनरुचि चिकुर विराजे।


                                   ६७५
                                 कमला
भगवति जलधिसुते शुभकारिणि घनरुचि चिकुर विराजे। 
कनक रुचिर तन अधिक सुलक्षणि चारि भुजा छवि छाजे।।
मणिमय खचित कीरिटि सुमस्तक पाटक शोभित चीरे। 
वर अरु अभय दुहू दिस दुहुकर युगकर कमल सुधीरे।।
असित गजेन्द्र चारि कनकघट भरि भरि अमृत लावे। 
मुख अम्बुज पर सिञ्चित अनुछन वाम दहिन दिस  भावे।।
भूषण मणिगण खचित लसित तनु अनउपमित जगमाया। 
विधि हरिहर इन्द्रादिक सुरमुनि सेवित नित करू दाया। 
कमलसुमुख करकमल सुकुचपद कमलालय नित देवी। 
कमल सुआसन अधिक सुभग छवि जगतजननि जगसेवी।।
स्तोत्रक लक्षण सुभाव कथन थिक तुअ गति श्रुति नहि जाने। 
आदिनाथ कर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याने।।