बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

675 . भगवति जलधिसुते शुभकारिणि घनरुचि चिकुर विराजे।


                                   ६७५
                                 कमला
भगवति जलधिसुते शुभकारिणि घनरुचि चिकुर विराजे। 
कनक रुचिर तन अधिक सुलक्षणि चारि भुजा छवि छाजे।।
मणिमय खचित कीरिटि सुमस्तक पाटक शोभित चीरे। 
वर अरु अभय दुहू दिस दुहुकर युगकर कमल सुधीरे।।
असित गजेन्द्र चारि कनकघट भरि भरि अमृत लावे। 
मुख अम्बुज पर सिञ्चित अनुछन वाम दहिन दिस  भावे।।
भूषण मणिगण खचित लसित तनु अनउपमित जगमाया। 
विधि हरिहर इन्द्रादिक सुरमुनि सेवित नित करू दाया। 
कमलसुमुख करकमल सुकुचपद कमलालय नित देवी। 
कमल सुआसन अधिक सुभग छवि जगतजननि जगसेवी।।
स्तोत्रक लक्षण सुभाव कथन थिक तुअ गति श्रुति नहि जाने। 
आदिनाथ कर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याने।।    

कोई टिप्पणी नहीं: