सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

686 . भगवति तुअ पद युगल सरोरुह अमल सुधारस जानी।


                                      ६८६ 
भगवति तुअ पद युगल सरोरुह अमल सुधारस जानी। 
भ्रमर हमर मन वसत निरन्तर जरा मृत्यु भय मानी।।
तुअ शरणागत बचत काल सँ रोग शोक नहि व्यापे। 
माया मोह जल सभ काटत यम पुनि थर थर कापे।।
जे जन सुमिरत जपत नाम तुअ से जन शिव समतूले। 
मन अभिलाष पुरत तसु अनुछन विधि लिपि मेटल मूले।।
ऋण के नाशिनि नाशि शत्रुकेँ छमिय हमर अपराधे। 
आदिनाथ के पुरित करिय नित सकल मनोरथ साधे।।

कोई टिप्पणी नहीं: