मंगलवार, 9 मई 2017

758 . किदहु करम मोर हीन रे माता जनि दुष रे धिया।


                                        758 . 
किदहु करम मोर हीन रे माता जनि दुष रे धिया। 
किदहु कुदिवस कए रखलादहु जनि मृग व्याधक फसिया।।
किदहु पुरुब कुकृत फल भुग्तल निकल भेल ते काजे। 
किदहु विधिवसे गिरिवर नन्दिनि भेलि हे विमुख आजे।।
                  प्रतापमल्ल ( मैथिली शैव साहित्य )

कोई टिप्पणी नहीं: