बुधवार, 7 अगस्त 2013

273 . कलम मेरे तूँ न रुकना


२७३.

कलम मेरे तूँ न रुकना 
रहो निरंतर प्रवाहित 
अन्याय के सामने कभी न झुकना 
क्षण जितने संघर्ष के गुजरे 
उसे ही खुशियाँ समझना 
दिल के कितने निर्मल हो तुम 
कर काले सफ़ेद पन्ने को 
देते हो जीवन के संगीत तुम 
एइयासी में कभी जाना न डूब 
अपने को कभी जाना न भूल 
मृत्यु हर पल तुझको पुकारे 
प्रवाह निरंतर रखना तुम 
कभी भूले भी न रुकना तुम 
किसी कीमत पर न झुकना तुम 
मेरे प्रिय कलम तूं बहता जा 
जीवन के संगीत सुनाता जा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  २७ - ०४ - १९८४ 
१० - २५ am  कोलकाता 

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