शुक्रवार, 13 मार्च 2015

414 .जिंदगी तो बस

४१४ 
जिंदगी तो बस 
अब गुजर सी रही है 
कर्जों का जुआ 
कंधों पे लाद 
कर्म भूमि में 
मात्र एक बैल की तरह 
जुता जा रहा हूँ 
अनायास अनमनस्क सा !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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